नाथ संप्रदाय के शिरोमणि शिवावतारी गुरु गोरख नाथजी के शिष्य बाबा जाहरवीर का जन्म सन १००० ईसवी० में राजस्थान प्रान्त में ददरेवा नगर में चौहान वंश में राजा जेवर सिंह के पुत्र के रूप में हुआ. हजारों लाखों की संख्या में सभी धर्म-जाति के लोग यहाँ इनके जन्म स्थान ददरेवा में तथा इनकी मेड़ी जहाँ पर यह महान देवता अपने नीले घोडा सहित पृथ्वी में समाऐ हैं जिसे गोगामेड़ी के नाम से जानते हैं प्रतिवर्ष अपनी-अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, हिन्दू भक्त बाबा को गोगावीर के नाम से तो वहीं मुस्लिम भक्त बाबा को गोगापीर के नाम से पूजते हैं. यहाँ पर बाबा अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं किन्तु मान्यता के अनुसार बाबा को संतान सुख देने वाला देवता माना जाता हैं.आज हम आपको धर्म के रक्षक, प्रजापालक, महान वीर गोगावीर की कहानी सुनाते हैं
निःसंतान राजा जेवर और रानी बाछल द्वारा नौलखा बाग़ लगवाना:-
जब काफी वर्षो बाद भी राजा जेवर सिंह और इनकी माँ बाछल को कोई संतान नहीं हुई तो राजा और रानी काफी निराश हो गए तब पंडितो के कहने पर राजा-रानी ने नौलखे बाग़ बनवाया और कुँआ खुदवाया और काफी दानपुण्य किया किन्तु इन सब प्रयासों के बाद भी जब कोई फल नहीं निकला और जब राजा-रानी ने नौलखे बाग़ का ब्याह रचाया तो नौलखा बाग़ सुख गया और कुँए का पानी भी खारी हो गया तब राजा-रानी बहुत ही दुखी हुए और उन्होंने राजज्योतिषी से कारण जाना तो ज्योतिषी ने बताया कि महाराज आपके इस जीवन में संतान सुख नहीं लिखा है. तब राजा जेवर सिंह ने कहा की कोई उपाय तो अवश्य बताये अन्यथा हमारा यह जीवन बेकार है तब ज्योतिषी ने बताया कि केवल शिवावतारी गुरु गोरखनाथ ही आपको संतान प्राप्ति का वरदान दे सकते हैं.
महारानी बाछल द्धारा १२ वर्षो तक गोरखनाथ नाथ की कठिन तपस्या करना:-
तब महारानी बाछल ने १२ वर्षो तक गुरु गोरखनाथ जी कि कठिन तपस्या की. बाछल मैया केवल एक वक्त रूखी चपाती खाती तथा हर रोज़ १४०० दिए कि चिरागी जलातीं. और कार्तिक मॉस में गंगा स्नान कभी नहीं भूलती. तब गुरु गोरखनाथ जी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर अपने सभी १४०० चेलों के साथ बागड़ भूमि ददरेवा में प्रस्थान किया और उनके आते ही सूखा नौलखा बाग़ हरा हो गया और साथ ही कुँए से पानी भी मीठा निकलने लगा और गोरखनाथ ने अपने डेरा तम्बू बाग़ में तान लिए और धुनि रमाकर अपने प्रिय शिष्य औघड़ नाथ को नगर में भिक्षा मांगले के लिए भेजा और कहा कि किसी भी बाँझ स्त्री से भिक्षा नहीं लेना. और जब बाछल मैया को यह बात पता लगी तो उन्होंने नगर में मुनादी करवा दी कि कोई भी भिक्षा सबसे पहले केवल राजदरवार से ही दी जायगी.
औघड़ नाथ का राजदरबार में जाकर भिक्षा मांगना:-
और जब औघड़ नाथ नगर में भिक्षा के लिए गए तो किसी ने भी उन्हें भिक्षा नहीं दी और आखिर में वह राजमहल गए तो दासी भिक्षा लेकर आये तो उन्होंने कहा कि हम किसी दासी और किसी भी बाँझ स्री के हाथ से भिक्षा नहीं लेंगे और दासी ने मैया बाछल से यह बात बताई तो मैया बाछल खुद ही भिक्षा लेकर जब औघड़ नाथ के सम्मुख आयी तो बाछल को देखकर औघड़ नाथ ने कहा कि मैया मेरे गुरु का आदेश हैं कि किसी भी बाँझ स्त्री के हाथ से भिक्षा नहीं लेने तब बाछल मैया फूटफूट कर रोने लगी और अपने पीडा औघड़ नाथ को सुनाई तो औघड़ नाथ ने कही कि मैया अब आपकी तपस्या का फल प्राप्त होने का समय आ गया है.
रानी बाछल की हमशक्ल बहन काछल द्वारा धोखे से वरदान प्राप्त करना:-
तब औघड़ नाथ ने मैया बाछल को गुरु गोरखनाथ का आशीर्वाद लेने को कहा और गुरु गोरखनाथ जी के आने कि सूचना पाकर मैया बाछल कि ख़ुशी का ठिकाना न रहा. और जब रानी बाछल को उनकी कपटिन हमशक्ल बहन काछल जो कि राजा जेवर सिंह के ही बड़े भाई नेवर सिंह को ब्याही थी और वही भी बाँझ थी को यह बात बताई तो वह महारानी बाछल से रानी के वस्त्रों का जोड़ा धोखे से पूजा के बहाने मांग लिया और अपनी बहिन बाछल से पहले ही गोरखनाथ से मिलने जा पहुची और धोखे से दो पुत्रों का वरदान मांग लिया. और जब रानी बाछल को इस बात का पता लगे तो वह तुरंत ही गुरुगोरखनाथ जी से मिलने के लिए पहुँची किन्तु गोरखनाथ जी वहाँ से प्रस्थान कर चुके थे तो रानी का मन उदासी से भर गया।
रानी बाछल द्वारा गुरु गोरखनाथ से प्रसादी गुग्गल प्राप्त करना:-
और वह गोरखनाथ जी से अपनी कहानी बताने के लिये उनके जाने के रस्ते ही चल पड़ी और रास्ते में गोरखनाथी जी के लाव लश्कर को रोककर सारी बात रोरोकर सुनाई तब गोरखनाथ जी ने उन्हें प्रसाद के रूप में गुग्गल दिया और कहा कि तुम्हारे पुत्र का वैभव हमेशा अमर रहेगा और जो यह देवताओ के सामान पूजा जायगा और सभी धर्मो के लोग इनको पूजेंगे और विशेषकर संतानप्राप्ति के देवता के रूप में भी लोग इनको जानंगे और तुम्हारी कपटिन बहन काछल के दोनो पुत्रों कि मर्त्यु भी इसके ही हाथ से होगी.
जाहरवीर बाबा और उनके साथियों सहित नीले घोड़े का जन्म:-
और इस तरह मैया बाछल ने प्रसाद रूपी गुग्गल को सबसे पहले अपने दरवार की सभी बाँझ नारियों और नीली घोड़ी को गूगल बांटी और अंत में खुद ही सेवन किया. और इस प्रकार नौ माह पशात बाबा जाहरवीर और उनके साथियों भज्जू कोतवाल, नरसिंह पांडे, अग्रजी भांजा और नीली घोड़ी से नीले घोड़े का जन्म हुआ. और इधर कपटिन काछल के दो जुड़वाँ पुत्र अर्जन और सर्जन का भी जन्म हुआ.