क्या है गरुड़ पुराण ?
गरुण पुराण के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं। इसमें 19 हजार श्लोक थे, लेकिन अब सिर्फ 7 हज़ार श्लोक ही हैं। गरुण पुराण 2 भागों में है। पहले भाग में श्रीविष्णु की भक्ति, उनके 24 अवतार की कथा और पूजा विधि के बारे में बताया गया है। दूसरे भाग में, प्रेत कल्प और कई तरह के नरक के वर्णन है। मृत्यु के बाद मनुष्य की क्या गति होती है? उसे किन-किन योनियों में जन्म लेना पड़ता है? क्या प्रेत योनि से मुक्ति पाई जा सकती है? श्राद्ध और पिंडदान कैसे किया जाता है? श्राद्ध के कौन-कौन से तीर्थ हैं? मोक्ष कैसे मिल सकता है? इस बारे में विस्तार से वर्णन है।
गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के समय यमलोक से 2 यमदूत आते है और जीव की आत्मा को शरीर से निकाल कर उसके गले में पाश बाँधकर उसे यमलोक ले जाते हैं | यमलोक पहुंचने पर, पापी जीव को यातना देने के बाद, यमराज के कहने पर, उसे आकाश मार्ग से घर छोड़ दिया जाता है। घर आकर वह जीवात्मा, अपने शरीर में, फिर से घुसना चाहती है। लेकिन यमदूत के पाश से मुक्त नहीं हो पाती है।
पिंडदान के बाद भी, वह जीवात्मा तृप्त नहीं हो पाती है। इस तरह भूख प्यास से बेचैन आत्मा, फिर यमलोक आ जाती है। जब तक उस आत्मा के वंशज, उसका पिंडदान नहीं करते, तो आत्मा दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय यातना भोगने के बाद, उसे विभिन्न योनियों में नया शरीर मिलता है। इसीलिये मनुष्य की मृत्यु के 10 दिन तक, पिंडदान ज़रुर करना चाहिए। दसवें दिन पिंडदान से, सूक्ष्म शरीर को चलने की शक्ति मिलती है। मृत्यु के 13वें दिन फिर यमदूत उसे पकड़ लेते हैं। उसके बाद शुरू होती है वैतरणी नदी को पार करने की यात्रा। वैतरणी नदी को पार करने में पूरे 47 दिन का समय लगता है। उसके बाद जीवात्मा यमलोक पहुंच जाती है।
पिंडदान के बाद भी, वह जीवात्मा तृप्त नहीं हो पाती है। इस तरह भूख प्यास से बेचैन आत्मा, फिर यमलोक आ जाती है। जब तक उस आत्मा के वंशज, उसका पिंडदान नहीं करते, तो आत्मा दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय यातना भोगने के बाद, उसे विभिन्न योनियों में नया शरीर मिलता है। इसीलिये मनुष्य की मृत्यु के 10 दिन तक, पिंडदान ज़रुर करना चाहिए। दसवें दिन पिंडदान से, सूक्ष्म शरीर को चलने की शक्ति मिलती है। मृत्यु के 13वें दिन फिर यमदूत उसे पकड़ लेते हैं। उसके बाद शुरू होती है वैतरणी नदी को पार करने की यात्रा। वैतरणी नदी को पार करने में पूरे 47 दिन का समय लगता है। उसके बाद जीवात्मा यमलोक पहुंच जाती है।
इस ग्रन्थ का नाम गरुड़ पुराण क्यों पड़ा ?
महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हैं। एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से मृत्यु के बाद जीवात्मा की स्थिति के बारे में प्रश्न किया था। तब विष्णु जी ने, मृत्यु के बाद की जीवात्मा की गति के बारे में, गरुण को बताया था। इसीलिए इसका नाम गरुण पुराण पड़ा।