Hinduism

उन्होंने दांत तोड़ के महाभारत लिखी और बन गए एकदंत | The story behind broken tooth of Lord Ganesh



भगवान गणेश बुद्धि और सिद्धि के देवता कहे जाते हैं | अब कहे जाते हैं तो कुछ कारण भी होगा | कभी कहीं कुछ ऐसा भगवान गणेश ने किया तो ज़रूर होगा जो उन्हें हर देवी देवता से पहले पूजे जाने का गौरव मिला | कोई किस्सा तो ज़रूर रहा होगा न गणेश जी के गजानन मुख के पीछे या फिर उनके सिर्फ एक दांत के पीछे ? गणेश से गजानन बनने वाली कहानी तो आपने सुनी होगी पर गजानन से एकदंत कैसे बने गंसेह ये हम आपको आज बताएँगे | तो आइये पढ़ते है ये कथा आज के इस विशेषांक में |

वेदव्यास, महाभारत और एकदंत :

महाभारत के युद्ध के पश्चात महर्षि वेदव्यास महाभारत की पूरी कहानी जिसमे गीता का ज्ञान भी सम्मिलित हो उसे लिखना चाहते थे | ये एक बहुत ही विशाल ग्रंथ बनना था इस वजह से महर्षि वेदव्यास को एक बहुत ही विद्वान् और ज्ञानी सहायक की आवश्यकता थी | इस काम के लिए उन्होंने गणेश जी का चुनाव किया |
 

गणेश जी को हमेशा से ही अपनी बुद्धि और युक्ति पर थोड़ा सा घमंड था | घमंडवश गणेश जी ने वेदव्यास के सामने एक शर्त रखी की आपको बिना रुके पूरी महाभारत का वर्णन एक सुध में करना होगा तभी मै लिखूंगा वरना मै बीच में ही छोड़ दूंगा | इस शर्त को वेदव्यास मान गए पर उन्होंने भी भगवान् गणेश के अहम् को तोड़ने के लिए एक शर्त रखी | इस शर्त के अनुसार वेदव्यास जो भी श्लोक पढ़ेंगे गणेश जी को उसे अपनी समझ के अनुसार उसका अर्थ निकलना होगा और उसे लिखना होगा | भगवन गणेश इस शर्त पर राजी हो गए |


दाँत के साथ अहम् भी टूटा :

दोनों लोगों के शर्तों को मानते ही महाभारत का लेखन कार्य शुरू हुआ | जैसे-जैसे महाभारत की कहानी आगे बढती जा रही थी उसी हिसाब से वेदव्यास जी के श्लोक कठिन होते जा रहे थे | भगवान् गणेश की कलम तेज़ी से वेदव्यास जी के श्लोकों का अनुवाद करके उन्हें पत्रों पर लिखे जा रही थी | 


ऐसा करते हुए एक समय ऐसा आया जब वेदव्यास जी की गति भगवान् गणेश की कलम से संभल नहीं पायी और वो टूट गयी | कलम के टूटते ही गणेश जी का दंभ भी टूट गया की वो ही ज्ञान के संसार में सर्वश्रेष्ठ हैं | उन्होंने महर्षि की योग्यता को कम आँका था पर उनके वेग कके सामने गणेश जी भी नहीं टिक पाए | चूंकि उन्होंने वचन दिया था की वो एक क्षण भी नहीं रुकेंगे इसीलिए उन्होंने तुरंत ही अपना एक दाँत तोड़ा और उसकी मदद से वो पुनः लेखन कार्य करने लगे | ये देखकर वेदव्यास जी भावुक हो उठे और उन्होंने गणेश जी को एकदंत की संज्ञा दी | इस प्रकार वो आगे चलकर एकदंत कहलाये |




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