नवरात्र के पहले दिन भक्त माँ शैलपुत्री की आराधना करते हैं। बाएं हाथ में कमल लिए मां की मूर्ति के निकट आराधना करते हुए भक्त उनका आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। आने वाले नौ दिनों में मां के नौ रूपों की आराधना की जाएगी।
नवरात्र के पहले दिन मां के प्रथम रूप यानि मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है। मां के सभी मंदिरों में सवेरे से पूजा अर्चना शुरू हो जाती है। मां के जयकारे लगाते भक्त मां के दर्शन करने को उत्सुक रहते हैं । संध्या वेला में विभिन्न मंदिरों में भजन संध्याओं का आयोजन किया जाता है। नवरात्र होने के कारण माँ के मंदिरों में आरती की विशेष व्यवस्था की गयी है ताकि अधिक से अधिक भक्त उसमें हिस्सा ले सकें। कहा जाता है कि नवरात्र के पहले दिन पर्वतराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री की आराधना की जाती है। यह मां दुर्गा का प्रथम रूप है। नवरात्र के पहले ही दिन भक्त घरों में कलश की स्थापना करते हैं जिसकी अगले आठ दिनों तक पूजा की जाती है। मां का यह अद्भुत रूप है। दाहिने हाथ में त्रिशूल व बांए हाथ में कमल का फूल लिए मां अपने पुत्रों को आर्शीवाद देने आती है।
पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री के रूप में जाना जाता है। श्वेत व दिव्य रूप में माँ वृषभ पर बैठी है। पैराणिक कथाओं के अनुसार मां शैलपुत्री पूर्वजन्म में दक्षप्रजापति की पुत्री थीं इनका नाम सती था। सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक यज्ञ में दक्षप्रजापति सभी देवताओं को बुलाते हैं लेकिन शिव को आमंत्रित नहीं करते। अपने पति का यह अपमान उन्हें बर्दाश्त नहीं होता जिसके चलते वह योगाग्नि में जलकर भस्म हो जाती है। जब इसकी जानकारी भगवान शिव को होती है तो दक्षप्रजापति के घरजाकर तांडव मचा देते हैं तथा अपनी पत्नी के शव को उठाकर प्रथ्वी के चक्कर लगाने लगते हैं। इसी दौरान सती के शरीर के अंग धरती पर अलग-अलग स्थानों पर गिरते हैं। यह अंग जिन 51 स्थानों पर गिरते हैं वहां शक्तिपीठ की स्थापित हो जाते हैं।
ध्यान मंत्र मां शैलपुत्री की आराधना के लिए भक्तों को विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए ताकि वह मां का आर्शीवाद प्राप्त कर सकें।
प्रथमं शैलपुत्री च :
पौराणिक मान्यता :
माँ शैलपुत्री ध्यान मंत्र :
वन्दे वांछितलाभाय चंद्राद्र्धकृतशेखराम।
वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।