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कहानी भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद जिसकी वजह से होली मनाई जाती है | Story of Lord Vishnu devotee Prahlad



होली जितना रंगीन और खुशनुमा त्योहार साल में सिर्फ एक बार ही क्यों आता है ? ऐसे त्योहारों को तो हर हफ्ते हमारे कैलेंडर पर दस्तक देनी चाहिये। पर ये त्यौहार आजकल का तो है नहीं ये तो सतयुग से मनाया जा रहा है। तो इसकी कोई खास वजह भी होगी तभी तो पूरे साल में एक ख़ास दिन को चुना जाता है होली के लिये। तो आइये आज हम आपको होली का वो कारण बताते है जो कभी सतयुग में घटी थी।

कौन थे प्रहलाद ?

क बार असुरराज हिरण्यकशिपु विजय प्राप्ति के लिए तपस्या में लीन था। मौका देखकर देवताओं ने उसके राज्य पर कब्जा कर लिया। उसकी गर्भवती पत्नी को ब्रह्मर्षि नारद अपने आश्रम में ले आए। वे उसे प्रतिदिन धर्म और विष्णु महिमा के बारे में बताते। यह ज्ञान गर्भ में पल रहे पुत्र प्रहलाद ने भी प्राप्त किया। बाद में असुरराज ने बह्मा के वरदान से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली तो रानी उसके पास आ गई। वहाँ प्रहलाद का जन्म हुआ।  

बाल्यावस्था में ही शुरू हो गयी थी विष्णु भक्ति :


बाल्यावस्था में पहुँचकर प्रहलाद ने विष्णु-भक्ति शुरू कर दी। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने गुरु को बुलाकर कहा कि ऐसा कुछ करो कि यह विष्णु का नाम रटना बंद कर दे। गुरु ने बहुत कोशिश की किन्तु वे असफल रहे। तब असुरराज ने अपने पुत्र की हत्या का आदेश दे दिया। उसे विष दिया गया, उस पर तलवार से प्रहार किया गया, विषधरों के सामने छोड़ा गया, हाथियों के पैरों तले कुचलवाना चाहा, पर्वत से नीचे फिंकवाया, लेकिन ईश कृपा से प्रहलाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। तब हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को बुलाकर कहा कि तुम प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ जाओ जिससे वह जलकर भस्म हो जाए।   

होलिका का हुआ नाश :


होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि तब तक कभी हानि नहीं पहुँचाएगी, जब तक कि वह किसी सद्वृत्ति वाले मानव का अहित करने की न सोचे। अपने भाई की बात को मानकर होलिका भतीजे प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ गई।  उसका अहित करने के प्रयास में होलिका तो स्वयं जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद हँसते हुए अग्नि से बाहर आ गया।  सलिए होली पर्व मनाते समय वास्तविक भाव को ध्यान में रखकर होली दहन करें।   इसके लिए फिर आप चाहे तो विगत वर्षों के बुरे अनुभवों और असफलताओं को एक कागज पर लिखकर अग्नि को समर्पित कर दें। अपने मन में चल रहे नकारात्मक भावों को होली दहन में डाल दें। तभी आप भी सकारात्मकता सोच से आगे बढ़ते हुए प्रहलाद की तरह ईश कृपा के पात्र बन जाएँगे।  



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