चाहे दिवाली की जगमग हो या किसी शादी का मंडप, जब तक दीवार पे शुभ-लाभ ना लिख दो तब तक मानो लक्ष्मी और शांति प्रवेश ही नहीं करेंगी। कभी सिन्दूर के घोल से लिखा तो कभी चंदन-रोरी से दीवार पर चढ़ा। हिंदुओ के किसी भी यज्ञ, अनुष्ठान या नए काम की शुरुवात से पहले प्रायः ही शुभ-लाभ दीवारों पर टांक देते हैं। ऐसा क्या हैं इन 2 शब्दों में ? या फिर इनका है कुछ गहरा संबंध हिन्दू पुराणों से ? तो आइये आज आपको बताते हैं हम शुभ-लाभ के पीछे का रहस्य।
पहले जान लो कौन हैं रिद्धि-सिद्धि ?
प्राचीन काल में रिद्धि-सिद्धि का विवाह भगवान गणेश के साथ हुआ था जो की ब्रह्मा की पुत्रियां थी। क्योंकी ब्रम्हा रिद्धि- सिद्धि के जनक है उन्होंने उनकी उत्पत्ति मानसिक रूप से की थी उस नाते उनमे पिता- पुत्री का सम्बन्ध बना। अधिकाँश हिन्दू पुराणों में गणेश प्रभु को रिद्धि- सिद्धि का स्वामी कहा गया है, वहाँ स्वामी का तातपर्य पति से है। जिस प्रकार पत्नी पति की अर्धांगनी होती है वो एक दूसरे के पूरक होते हैं उसी प्रकार गणेश जी भी अष्ट सिद्धि के स्वामी कहे जाते है ।
भगवान गणेशा का शुभ लाभ से सम्बन्ध:
हिन्दू धर्म में अधिकांश लोग शुभ कार्य करने से पहले या त्योहारों पर जैसे दीपावली आदि पर शुभ- लाभ लिखते है पर इसका वास्तविक अर्थ नहीं जानते वास्तव में शुभ – लाभ भगवान गणेश के पुत्र है। शुभ का अर्थ पवित्र है एवं लाभ का अर्थ फायदे से है। शुभ की जन्मदात्री ऋद्धि हैं एवं लाभ की जन्मदात्री सिद्धि हैं। गणेश पुराण के अनुसार शुभ – लाभ को केशं एवं लाभ नामों से भी जाना जाता है।