यूँ तो भगवान शंकर अत्यंत ही सरल और सौम्य स्वभाव के है। शायद यही वजह है की उनके भक्त उनको भोले भी कहते हैं। पर जब इन्हें क्रोध आता है तब इनके सामने कोई टिक नहीं पाता। हमारे धार्मिक ग्रंथो और पुराणों में ऐसी ढेरों कहानियाँ मिल जाती हैं जो शिव के रौद्र रूप का वर्णन करती है। कुछ कहानियों में ऐसा भी कहा गया है की भगवान शिव ने ब्रह्मा जी का मस्तक काट दिया था। इस विषय पर हिन्दू धर्म में अलग-अलग धारणायें है। तो आइये आज जानते हैं हिन्दू धर्म के दो देवों की इस कहानी के बारे में।
क्यों काट दिया ब्रह्मा जी का सिर ?
धर्म ग्रंथों के अनुसार भैरव भगवान शिव का ही एक अवतार हैं। भैरव के स्वभाव में क्रोध है, तामसिक भाव है। इस अवतार का मूल उद्देश्य सारी बुराईयों को समावेश करने के पश्चात भी अपने अंदर धर्म को स्थापित करना है। शिव पुराण में भगवान शंकर के इस रूप के संदर्भ में लिखा गया है कि एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु स्वयं को शकंर जी से श्रेष्ठ मानने लगे थे।
इस विषय पर जब साधु-संतों से पूछा गया तो उन्होंने भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की बात को नकार दिया। उसी वक़्त वहां भगवान शंकर प्रकट हुए और ब्रह्मा जी ने कहा कि “तुम मेरे पुत्र हो चद्रशेखर”, मेरी शरण में आओ। इतनी बात सुनने के बाद भगवान शंकर को क्रोध आ गया और उन्होंने वहीं कालभैरव का रूप धारण कर अपनी उंगली के नाख़ून से ब्रह्मा का सर काट दिया।
एक अन्य धारणा के अनुसार :
जब सृष्टि (सतरूपा) का निर्माण करने के बाद भगवान ब्रह्मा उसके पीछे-पीछे जाने लगे तो उनके चार सिर निकल आये थे लेकिन जब पांचवा शीश निकला तो देवताओं ने शिवजी से इसे मिटाने की गुहार लगाई। भगवान शिव ने अपना खड्ग उठाया और भगवान ब्रह्मा का पांचवे सर को काट दिया। भगवान शिव के कहा कि ये पांचवा सर मानव के अंहकार का प्रतीत है जिसे समय-समय पर काट देना चाहिए।