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कहानी उस संत की जो अपनी पत्नी से मिलने मुर्दे पर बैठकर नदी पार कर आया | Interesting Facts about Tulsidas Life



*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है। 

संत तुलसीदास के बारे में तो हम सभी जानते हैं। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई श्रीरामचरितमानस हिन्दी ग्रंथों में अनमोल है। इस ग्रंथ में रामलीला के जीवन का जितना सुंदर वर्णन किया गया है, वे किसी अन्य ग्रंथ में नहीं देखने को मिलता है। संत तुलसी विद्वान व घर्म के मर्मज्ञ थे। वे स्वयं एक आदर्श पुरुष थे, इसलिए उन्होंने अपनी रचना के लिए एक आदर्श पुरुष श्रीराम को ही चुना है। अपने जीवनकाल में तुलसीदास जी ने 12 ग्रंथ लिखे थे। तुलसीदासजी को महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। इस ग्रंथ के जरिए हम जानेंगे तुलसीदासजी के जीवन की अनोखी बातें और खास बातें।

पत्नी ने दिखाई नई राह :


गोस्वामी तुलसीदास का जन्म संवत् 1554 में हुआ था। ऐसा बताया जाता है कि जन्म के बाद वे रोए नहीं थे, बल्कि उनके मुख से श्रीराम शब्द निकला था। इसलिए उनका नाम रामबोला भी था। उन्होंने बचपन से ही धार्मिक ग्रंथो और वेदों की जानकारी थी। तुलसीदास अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। इसलिए एक बार जब उनकी पत्नी अपने मायके चली गई तो वे उनके पीछे वहां भी पहुंच गए। इस पर उनकी पत्नी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने कहा कि जितना प्यार मुझे करते हो, उसका आधा भी अगर भगवान की भक्ति में लगा लो तो तुम्हारा कल्याण हो जाए। ये बात तुलसी दास को बहुत बुरी लगी और उन्होंने सांसरिक जीवन से त्याग ले लिया और ईश्वर भक्ति में लीन हो गए हैं।

सपने में आए भोले बाला :


जब तुलसीदास जी ने साधुवेश धारण कर लिया, तो उनके सपने में माता पार्वती और शंकर जी आए, जिन्होंने उन्हें रामचरितमानस लिखने को प्रेरित किया। जब उन्होंने आंख खोली तो देखा भगवान शिव और पार्वती उनके सामने खड़े थे। उन्होंने तुलसीदास को आयोध्या जाने को कहा। इसके बाद वे आयोध्या के लिए रवाना हो गए। संवत् 1631 को रामनवमी के दिन वैसा ही योग था जैसा त्रेतायुग में रामजन्म के समय था। उस दिन तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारंभ की। दो वर्ष, सात महीने व छब्बीस दिन में ग्रंथ की समाप्ति हुई। ऐसा बताया जाता है कि जब तुलसीदास की रचना पूरी हो गई तो वे उसे लेकर काशी गए और उन्होंने ये पुस्तक भगवान विश्वनाथ के मंदिर में रखी। सुबह इस पुस्तक पर भगवान शिव के हस्ताक्षर थे।

पंडितों ने ली परीक्षा :


तुलसीदास की भक्ति से अन्य पंडितों को काफी ईष्या होने लगी थी। वे तुलसीदास को नीचा दिखाना चाहते थे। इसलिए एक बार पंडितों ने भगवान काशी विश्वनाथ के मंदिर में सामने सबसे ऊपर वेद, उनके नीचे शास्त्र, शास्त्रों के नीचे पुराण और सबसे नीचे श्रीरामचरितमानस ग्रंथ रख दिया। मंदिर बंद कर दिया गया। सुबह जब मंदिर खोला गया तो सभी ने देखा कि श्रीरामचरितमानस वेदों के ऊपर रखा हुआ है। इसके बाद उन्होंने तुलसीदासजी से क्षमा मांगी और श्रीरामचरितमानस के सर्वप्रमुख ग्रंथ माना। 



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