कौन हैं माँ चंद्रघंटा ? | Who is Maa Chandraghanta?
आज नवरात्र का तीसरा दिन है। जैसा की हमें ज्ञान है कि आज का दिन माँ चंद्रघंटा को समर्पित होता है। हिन्दू धर्म में माँ चंद्रघंटा को माता दुर्गा का तीसरा अवतार कहा गया है। चंद्रघंटा का अर्थ है 'चंद्र और घंट को धारण करने वाली '। आमतौर पर हमें माँ चंद्रघंटा के सन्दर्भ में बहुत ही कम बाते पता चलती है जैसे की उनका जन्म कैसे हुआ ?, उनकी उत्पत्ति के पीछे क्या कारण था ?, उनकी पूजा क्यों की जाती है ? तो आइये आज के इस विशेषांक में हम जानते है अपनी माँ चंद्रघंटा को कुछ करीब से ।
माँ चंद्रघंटा के जन्म की कहानी :
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माँ चंद्रघंटा |
बात तब की है जब भगवान् शिव माता सती के विच्छेद के बाद बहुत ही व्यथित थे उन्होंने निश्चय कर लिया था की अब वो कभी भी विवाह नहीं करेंगे। परन्तु माँ पार्वती की दृढ़ और अडिग तपस्या के सामने भगवान् शंकर को अपना निश्चय तोड़ना पड़ता है।
माँ पार्वती महाराज हिमालय और मैना देवी की पुत्री थी। विवाह की तैयारियाँ आरम्भ हुई। ठीक विवाह वाले दिन भगवान् शिव अपने औघड़, मलंग रूप में पूरे बारातियों के साथ विवाह स्थल पर प्रस्तुत होते हैं। उनका यह रूप देखकर माँ पार्वती की माँ मैना देवी मुर्छित हो जाती हैं।
वो दुल्हे के ऐसे श्रृंगार और व्यक्तित्व को देखकर निश्चय करती हैं की माँ पार्वती का विवाह भगवान् शंकर से नहीं करेंगी।
तब इस क्षण माँ पार्वती अपने पूर्ण रूप में आती है और माँ चंद्रघंटा का रूप धारण करती हैं। माँ चंद्रघंटा का अस्टभुजा रूप देखकर उनकी माँ मैना देवी चकित रह जाती हैं। फिर माँ चंद्रघंटा उन्हें भगवान् शिव से विवाह माँ पार्वती के विवाह के लिए वशीकृत करती हैं।
माँ चंद्रघंटा ने अपनी विभिन्न भुजाओं में त्रिशूल,गदा, खडग, कमल, धनुष-बाण, घंट और कमंडल धारण किया है जिससे उनका यह रूप देखते ही बन रहा था। अंततः मैना देवी शिव-पार्वती के विवाह के लिए राजी हो जाती हैं और माँ चंद्रघंटा की अनुकम्पा से पूरा प्रयोजन संपन्न होता है।