शरद पूर्णिमा कैसे मनाये: कथा और पूजन विधि
आज ( 15 अक्टूबर ) को शरद पूर्णिमा है। शरद पूर्णिमा आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है. इसे रासपूर्णिमा या कोजागिरी पूर्णिमा भी कहा जाता है. शरद पूर्णिमा भारत भर में बड़ी खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है।इस दिन को भारत के कई हिस्सों में देवी लक्ष्मी के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है और माना जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर जाती है और सभी लोगों को धन और समृद्धि के लिए आशीर्वाद देती है.
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शरद पूर्णिमा |
तैयारी:
१. गाय के दूध से बनी हुई खीर
२, पुरी
३. देवताओं की मूर्तियों के लिए सफेद कपड़े
४. एक पाटा
५. एक कलश में पानी
६, एक कटोरी में गेहूं
७. चावल और रोली
पूजा की विधि
१. एक पाटे पर पानी भरा कलश और गेहूं से भरी हुई एक कटोरी रखे ।
२. कलश और कटोरी पर रोली से स्वास्तिक बनाये।
३. हाथ में गेहूं की 13 दाने ले और मुठ्ठी बंद कर ले और शरद पूर्णिमा की कथा सुने या पढे या ये विडियो देखे
४. पूजा के बाद जल वाला कलश और खीर पूरी रात के लिए चांद की रौशनी में रखे
५. अगले दिन उस खीर को खाये। ये चमत्कारिक खीर है इससे सभी रोग दूर हो जाते है और स्वस्थ शरीर होता है। कलश का थोड़ा जल पिए , घर पर सबको पिलाये और कुछ बछो के नहाने के पानी में मिलकर नहलाये।खुद भी नहा सकते है.
शरद पूर्णिमा की कथा
एक साहूकार था जिसकी दो बेटियां थी । दोनों बहनों पूर्णिमा का व्रत किआ करती थी। बड़ी बहन पूरा व्रत रखती थी जबकि छोटी बहिन अधूरा व्रत रखती थी.इस वजह से छोटी बहन के बच्चों की पैदा होते ही मौत हो जाती थी।
परेशान होकर उसने कई पंडितों से सलाह ली तब उसे पता चला की बछो की मौत का कारण उसका अधूरा व्रत है।
छोटी बहन ने उस दिन प्राण लिया और पूर्णिमा का व्रत पूरी तरह से पालन किया। कुछ समय के बाद उसे एक बेटा हुआ लेकिन वह भी बच नहीं पाया । तब छोटी बहन का एक पीडे पर बेटे के शरीरको एक कपड़े से ढक कर रख दिया और बहिन से उसपर बैठने को कहा।
जैसे ही बड़ी बहिन स्टूल( पीढे) पर बैठी और जैसी ही उसके शरीर से बच्चा छुआ वो जीवित हो गया. बड़ी बहिन
चौंक कर बोली की अभी उससे लड़के की हत्या का पाप हो जाता। तब छोटी बहन ने सब बताया की उसके पूण्य की वजह से उसका बच्चा जीवित हो गया
पूर्णिमा माता, जैसा आपने छोटी बहन को आशीर्वाद दिया, वैसा आशिर्वाद सबको देना।