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कर्ण को अर्जुन ने नहीं इन 3 श्रापों ने मारा था | 3 curse that led Karna to his death



महाभारत के युद्ध में ना जाने कितने ही वीर योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए परन्तु उन सब में से सबसे ज्यादा ख्याति अगर किसी ने कमाई तो वो दानवीर कर्ण थे | महाभारत के युद्ध के बजाय ज्यादातर लोग उनको उनके दानी प्रवृति की वजह से जानते है | कर्ण के इस दानी व्यवहार का कर्ण को भारी नुकसान चुकाना पड़ा था महाभारत के युद्ध में | आइये जानते है उन तीन श्रापों को जो कर्ण को उनकी उदारता की वजह से मिले और अंततः उनकी मृत्यु का कारण भी बने |

1. गुरु परशुराम से मिला श्राप :

परशुराम जाति से ब्राह्मण थे और क्षत्रियों से बहुत ही घृणा करते थे | कर्ण को अपनी जाति नहीं पता थी और परशुराम केवल ब्राह्मण पुत्रों को ही युद्ध सिक्षा देते थे | कर्ण ने उनको अपना गुरु मान लिया और परशुराम से युद्ध कौशल के गुण सीखने लगे | एक बार की बात है कर्ण की एक जंघा पर गुरु परशुराम सिर रखकर सो रहे थे | 


कर्ण की दूसरी जंघा पर एक बिछु चढ़ गया और डंक मारने लगा | गुरु को ना उठाने की वजह से कर्ण चुपचाप बैठे रहे और बिच्छू के डंक को सहते रहे | जब परशुराम उठे तो उन्होंने देखा कर्ण की जांघ से खून की धार बह रही थी | ये देखते ही परशुराम समझ गए की कर्ण ब्राह्मण नहीं है क्योंकि किसी ब्राह्मण पुत्र में पीड़ा को झेलने का इतना बल नही होता | चूंकि कर्ण ने उनसे अपनी जाति छिपाई थी इस वजह से परशुराम क्रुद्ध हो गए है और उन्होंने कर्ण को श्राप दिया की जिस क्षण भी उन्हें परशुराम द्वारा सीखाई गयी विद्या की सबसे ज्यादा ज़रुरत होगी उस क्षण वो उस विद्या को पूरी तरह से भूल जायेंगे |
ये श्राप कर्ण और अर्जुन के महाभारत के निर्णायक युद्ध में फलीभूत हुआ |

2. ब्राह्मण द्वारा दिया हुआ श्राप :

परशुरामजी के आश्रम से जाने के पश्चात, कर्ण कुछ समय तक भटकता रहा। इस दौरान वह शब्दभेदी विद्या सीख रहा था। अभ्यास के दौरान उसने एक गाय के बछड़े को कोई वनीय पशु समझ लिया और उस पर शब्दभेदी बाण चला दिया और बछडा़ मारा गया। 


तब उस गाय के स्वामी ब्राह्मण ने कर्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार उसने एक असहाय पशु को मारा है, वैसे ही एक दिन वह भी मारा जाएगा जब वह सबसे अधिक असहाय होगा और जब उसका सारा ध्यान अपने शत्रु से कहीं अलग किसी और काम पर होगा।

3. माँ पृथ्वी से मिला श्राप :

एक बार की बात है कर्ण वन में विचरण कर रहे थे की तभी उन्हें किसी कन्या के विलाप की ध्वनि सुनाई दी | वो उसके पास गए और उस लड़की के रोने का कारण पुछा | तब उस लड़की ने ये बताया की वो अपनी गगरी में घी भर के ले जा रही थी पर गलती से उसकी गगरी फूट गयी और सारा घी मिट्टी में मिल गया | अब अगर वो बिना घी के घर जाएगी तो उसकी सौतेली माँ उसे मारेगी | उसकी व्यथा सुनकर दानी कर्ण ने उसे तुरंत घी लाकर देने का वचन दिया पर उस लड़की ने कहा की मुझे यही घी चाहिए जो धरती में समा रहा है |


तब कन्या पर दया करते हुए कर्ण ने घी युक्त मिट्टी को अपनी मुठ्ठी में लिया और निचोड़ने लगा ताकि मिट्टी से घी निचुड़कर घड़े में गिर जाए। इस प्रक्रिया के दौरान उसने अपने हाथ से एक महिला की पीड़ायुक्त ध्वनि सुनी। जब उसने अपनी मुठ्ठी खोली तो धरती माता को पाया। पीड़ा से क्रोधित धरती माता ने कर्ण की आलोचना की और कहा कि उसने एक बच्ची के घी के लिए उन्हें इतनी पीड़ा दी। और तब धरती माता ने कर्ण को श्राप दिया कि एक दिन उसके जीवन के किसी निर्णायक युद्ध में वह भी उसके रथ के पहिए को वैसे ही पकड़ लेंगी जैसे उसने उन्हें अपनी मुठ्ठी में पकड़ा है, जिससे वह उस युद्ध में अपने शत्रु के सामने असुरक्षित हो जाएगा।



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