गंगा तट पर बसे काशी में भोलेनाथ के बाद यदि किसी का महत्व है, तो वो हैं काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव। ऐसी मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के इस शहर में रहने के लिए बाबा काल भैरव की इजाजत लेना जरूरी है। वही इस शहर के प्रशासनिक अधिकारी हैं। इसीलिए उन्हें 'काशी का कोतवाल' कहा जाता है। बाबा काल भैरव का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर शहर के मैदागिन क्षेत्र में स्थित है। भगवान शंकर की इस नगरी में उनके बाद बाबा काल भैरव का ही सबसे बड़ा स्थान है। बाबा विश्वनाथ इस शहर के राजा हैं और बाबा काल भैरव इस शहर के सेनापति हैं। यहां उनकी मर्जी चलती है, क्योंकि वही शहर की पूरी व्यवस्था संभालते हैं।
बाबा काल भैरव ही काशी में इंसानों को गलती करने पर सजा देते हैं। यमराज को भी यहां के इंसानों को दंड देने का अधिकार नहीं है। बाबा विश्वनाथ राजा हैं और काल भैरव उनके कोतवाल, जो लोगों को आशीर्वाद भी देते हैं और सजा भी। उनके मुताबिक, काल भैरव के दर्शन मात्र से शनि की साढ़े साती, अढ़ैया और शनि दंड से बचा जा सकता है। बाबा को सरसों के तेल का दीपक, उरद की दाल का बड़ा ,बेसन के लड्डू और मदिरा बेहद पसंद है।
बाबा काल भैरव मंदिर में रोज 4 बार आरती होती है, जिसमें रात की शयन आरती सबसे प्रमुख है। आरती से पहले बाबा को स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है, लेकिन उस दौरान पुजारी के अलावा किसी और को मंदिर के अंदर जाने की इजाजत नहीं होती है। बाबा की पूजा का तरीका भी बेहद साधारण है। बाबा को सरसों का तेल चढ़ता है। उनके पास एक अखंड दीप हमेशा जलता रहता है। भक्त उसमें तेल डालते हैं, इससे वो पाप मुक्त हो जाते हैं और भय दूर हो जाता है।