क्या है सिख धर्म ?
"ओंकार, सतिनाम, करतापुरख, निर्भाओ, निरवैर, अकालमूर्त, अजूनी, स्वैभंग"
ये सिख धर्म के वो मूल मंत्र हैं जो इस धर्म की नींव भी है और स्तंभ भी | ये दुनिया रचने वाला सिर्फ एक है, इसको चलाने वाला भी एक है, हमारे दुखों को सुनने वाला और उनको दूर करने वाला भी एक है | एकेश्वरवादी धर्म की बात करने वाले अनुयायी को सिख कहते हैं | जो हमारे समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जर्जर रूढ़ियों और पाखण्डों को दूर करते हुए जन-साधारण को धर्म के ठेकेदारों, पण्डों, पीरों आदि के चंगुल से मुक्त करता है वो सिख है | प्रेम, सेवा,परोपकार और भाई-चारे की दृढ़ नीव पर ही सिख धर्म ने अपने मजबूत स्तंभ बनाये है |
किसने की सिख धर्म की स्थापना ?
15 अप्रैल सन 1469 को रावी नदी के किनारे बसे तलवंडी गाँव में एक ऐसे बच्चे का जन्म हुआ जो बहुत ही ज्यादा जिज्ञासु था भगवान की सत्ता को समझने के लिए | 7 साल की उम्र में उस बच्चे का विद्यालय जाना बंद हो गया क्योंकि वहां के शिक्षकों के उस बच्चे की भगवान को लेके नैसर्गिक समझ के आगे होश उड़ गए | विद्यालय से लड़के को ससम्मान घर वापस भेज दिया गया | 16 वर्ष की उम्र में इस बालक की शादी कर दी गयी | एक तरफ सांसारिक बंधन जकड़ता जा रहा था और दूसरी तरफ ईश्वर को समझने की ललक बढती ही जा रही थी | ये ललक ही थी जिसने पूरी दुनिया को एक ऐसा गुरु दिया जिन्हें आज हम सब गुरु नानक देव के नाम से जानते है |गुरु नानक देव का जीवन परिचय :
गुरु नानक के विचार हमेशा से ही सर्वेस्श्वरवादी थे | मूर्तिपूजा और समाज में बसी ढेरों कुरीतियों के विरुद्ध उन्होंने आज से इतने वर्ष पूर्व ही जंग छेड़ रखी थी | अपने समय में उन्होंने नारी सम्मान और बहुओं को बेटियों जैसा दर्जा और प्यार देने की वकालत की थी | वो 32 वर्ष की उम्र में पिता बने और अपने सारे कर्तव्यों का पालन किया | एक समय जब उन्हें लगा की अब उनकी ज़रुरत उनके परिवार से ज्यादा दुनिया को है तब उन्होंने अपना परिवार अपने श्वसुर के सुपुर्द किया और अपने 4 मित्रों के साथ विश्व भ्रमण और सिख धर्म का प्रचार प्रसार करने निकल पड़े | गुरु नानक देव जी ने कहा कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिये है। मूर्तिपुजा, बहुदेवोपासना को ये अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके मत का प्रभाव पड़ता था।
मृत्यु :
गुरु नानक देव अपने आप में एक बहुत ही सुन्दर कवी थे | उनकी ढेरों रचनाएँ फारसी, हिंदी, खड़ी बोली, उर्दू, पंजाबी, अरबी और मुल्तानी में हमारे पास है | इसे हम गुरुबानी भी कहते है | गुरु नानक देव अपने अंतिम दिनों में बहुत ही लोकप्रिय हो गए थे | उनके वचन और ज्ञान की दूर दूर तक पहुँच हो रही थी | मृत्यु से पहले उन्होंने एक धर्मशाला बनवाई जो अब पकिस्तान में है | उन्होंने जाने से पहले अपने शिष्य को अपना उत्तराधिकारी बनाया जो आगे चल के गुरु अंगद देव के नाम से जाने जाते है | मृत्यु पर्यंत गुरु नानक देव अपनी उसी धर्मशाला में रहे | 15 सितम्बर 1539 में उनका देहावसान हुआ |