जानिए भगवान् बाबा जाहरवीर की अनोखी कहानी उनके चालीसा में।
हिन्दू धर्म के जिन्दा देव बाबा जाहरवीर की कहानी की सच्चाई उनके चालीसा में ही छिपी हुई है। हम आपको बागड़ भूमि अर्थात राजस्थान भूमि के वीर देवता हिन्दू धर्म और गौ रच्छक और गुरु गोरख नाथ जी के प्रिय शिष्य बाबा जाहरवीर के जीवन से सम्बंधित घटनाओ के बारे में उनके चालीसा में वर्णित कर रहे हैं जो इस प्रकार है
श्री जाहरवीरम भूतप्रेतादि निवारकरणं, गोरख शिष्यम बाछल नन्दनम।
भाला आदि आयुधिकारी, नीलाश्व वाहनं नमामि गोगवीरम, बागड़ धरा अधिनायकम।
सुवन केहरि जेवरसुत महाबली रणधीर, बन्दुसुत रानी बाछल, विपत निवारण वीर।
जय जय चौहानवंश गोगावीर अनूप, अंगलपाल को जीतकर आप बने सुरभूप।
जय जय जाहर रनधीरा पर दुःख भजन बागड़ वीरा, गुरु गोरख का है वरदानी जाहरवीर जोधा लासानी।
गौरवं मुख माह विशाला माथे मुकट गुघराले वाला, काँधे धनुष गले तुलसी माला, कमर कृपाड रक्षा को ढाला।
बल सागर गुण निधि कुमारा दुखी जनों का बना सहारा, जन्मे गोगावीर जग जाना,
ईसवी सन हजार दरमरियाना।
जेवर राव के पुत्र कहाये माता पिता के मान बढ़ाये, पूर्ण हुई कामना सारी जिसने विनती करि तुम्हारी।
संत उबार असुर संहारे, भक्त जनों के काज सँवारे।
गोगावीर की अज़ बखानी जिनको बयाही श्रियल रानी,
बाछल रानी जेवर राणा महा दुखी थे बिन संताना,
भंगिन ने जब बोली मारी जीवन हो गया था उनको भारी।
सूखा बाग़ हो गया था नौलखा, देख देख जग का मन दुखा।
कुछ दिन पीछे साधू आये चेली चेला संग में लाये, जेवर राव कुआँ खुदवाया,
और उद्घाटन जब करना चाहा, खारी नीर कुँए से निकला, राजा रानी का मन तब पिघला।
रानी तब ज्योतिषी बुलबाया, कौन पाप में पुत्र ना पाया, कोई उपाय हमको बतलाओ,
उन कहा गोरख गुरु को मनाओ। गुरु गोरख जो खुश जावे, तो संतति पाना मुश्किल नाये।
रानी गोरखगुरु के गुण को गावै, नेम धर्म को नहीं बिसरावे,
करें तपस्या दिन और राति, एक वक्त खाएं रूखी चपाती।
कार्तिक मॉस में गंगा नहाना, व्रत एकादशी का नहीं भुलाना।
चेलों के संग गोरख आये, नौलखे में तम्बू तनवाये,
मीठा नीर कुँए का कीना सूखा बाग़ हरा कर दीना।
मेवा फल सब साधू खावे अपने गुरु के गुड को गावे।।
औधड नाथ भिक्षा मांगने आये, बाछल रानी दुःख सुनाये,
औघड़नाथ जान लियो मनमाही, तपबल को कुछ मुश्किल नाहीँ।
रानी होवे मनसा पूरी गुरु शरण है बहुत जरुरी।
बारह बरस जपा गुरु नामा, तब गोरख ने मन में जाना,
पुत्र देने की हामी भर ली, पूरनमाशी की निश्यय कर ली।
काछल कपटिन गजब गुजारा, धोखा गुरु संग किया करारा,
बाछल बनकर जोड़ा पाया, बहन पर तरस जरा भी न आया।
औघड़ गुरु को भेद बताया, तब बाछल ने गुग्गल पाया,
प्रसादरूप गुग्गल दाना, रानी पुत्र जनो मरदाना,
नीली घोड़ी और पंडतानी, लूना दासी ने भी जानो,
रानी गुग्गल बाँट कर खाई, सब बाँझो को मिली दवाई,
भादों कृष्ण की नवमी आई, तब जेवर राव घर बजी बधाई,
नरसिंह पांडे, नीला घोडा, भज्जू कोतवाल जना रणधीरा,
रूप विकटधर सबै ही डरावे, जाहरवीर के मन को भावे।।
विवाह हुआ गोगा भये राणा, संगलदीप में बने मेहमाना,
रानी श्रियल संग फिरे फेरे।
जाहर राज बागड़ का करे, और अरजन, सरजन काछल जने,
गोगावीर से हमेशा रहे वो तने, दिल्ली गए लड़न के काजे, अंगलपाल चढ़े महाराजा।
उसने घेरी बागड़ साड़ी जाहरवीर हिम्मत नहीं हारी।
अरजन, सरजन जान से मारे, अंगलपाल ने शस्त्र डारे,
चरण पकड़कर पिंड छुड़ाया, सिंहभवन माड़ी बनवाया।
उसी में गोगावीर समाये, गोरखटीला धूनी रमाये,
पुण्यवान भक्त वहाँ जाये, तन मन धन से सेवा लाये,
मनसा पूरी उनकी होये गोगावीर को सुमरे जोई,
चालीस दिन पढ़े जो चालीसा सारे कष्ट हरे जगदीशा,
दूधपुत उन्हें दे विधाता कृपा करे, गुरुगोरखनाथा।।
जय जय जाहर रनधीरा पर दुःख भजन बागड़ वीरा, गुरु गोरख का है वरदानी जाहरवीर जोधा लासानी।
गौरवं मुख माह विशाला माथे मुकट गुघराले वाला, काँधे धनुष गले तुलसी माला, कमर कृपाड रक्षा को ढाला।
बल सागर गुण निधि कुमारा दुखी जनों का बना सहारा, जन्मे गोगावीर जग जाना,
ईसवी सन हजार दरमरियाना।
जेवर राव के पुत्र कहाये माता पिता के मान बढ़ाये, पूर्ण हुई कामना सारी जिसने विनती करि तुम्हारी।
संत उबार असुर संहारे, भक्त जनों के काज सँवारे।
गोगावीर की अज़ बखानी जिनको बयाही श्रियल रानी,
बाछल रानी जेवर राणा महा दुखी थे बिन संताना,
भंगिन ने जब बोली मारी जीवन हो गया था उनको भारी।
सूखा बाग़ हो गया था नौलखा, देख देख जग का मन दुखा।
कुछ दिन पीछे साधू आये चेली चेला संग में लाये, जेवर राव कुआँ खुदवाया,
और उद्घाटन जब करना चाहा, खारी नीर कुँए से निकला, राजा रानी का मन तब पिघला।
रानी तब ज्योतिषी बुलबाया, कौन पाप में पुत्र ना पाया, कोई उपाय हमको बतलाओ,
उन कहा गोरख गुरु को मनाओ। गुरु गोरख जो खुश जावे, तो संतति पाना मुश्किल नाये।
रानी गोरखगुरु के गुण को गावै, नेम धर्म को नहीं बिसरावे,
करें तपस्या दिन और राति, एक वक्त खाएं रूखी चपाती।
कार्तिक मॉस में गंगा नहाना, व्रत एकादशी का नहीं भुलाना।
चेलों के संग गोरख आये, नौलखे में तम्बू तनवाये,
मीठा नीर कुँए का कीना सूखा बाग़ हरा कर दीना।
मेवा फल सब साधू खावे अपने गुरु के गुड को गावे।।
औधड नाथ भिक्षा मांगने आये, बाछल रानी दुःख सुनाये,
औघड़नाथ जान लियो मनमाही, तपबल को कुछ मुश्किल नाहीँ।
रानी होवे मनसा पूरी गुरु शरण है बहुत जरुरी।
बारह बरस जपा गुरु नामा, तब गोरख ने मन में जाना,
पुत्र देने की हामी भर ली, पूरनमाशी की निश्यय कर ली।
काछल कपटिन गजब गुजारा, धोखा गुरु संग किया करारा,
बाछल बनकर जोड़ा पाया, बहन पर तरस जरा भी न आया।
औघड़ गुरु को भेद बताया, तब बाछल ने गुग्गल पाया,
प्रसादरूप गुग्गल दाना, रानी पुत्र जनो मरदाना,
नीली घोड़ी और पंडतानी, लूना दासी ने भी जानो,
रानी गुग्गल बाँट कर खाई, सब बाँझो को मिली दवाई,
भादों कृष्ण की नवमी आई, तब जेवर राव घर बजी बधाई,
नरसिंह पांडे, नीला घोडा, भज्जू कोतवाल जना रणधीरा,
रूप विकटधर सबै ही डरावे, जाहरवीर के मन को भावे।।
विवाह हुआ गोगा भये राणा, संगलदीप में बने मेहमाना,
रानी श्रियल संग फिरे फेरे।
जाहर राज बागड़ का करे, और अरजन, सरजन काछल जने,
गोगावीर से हमेशा रहे वो तने, दिल्ली गए लड़न के काजे, अंगलपाल चढ़े महाराजा।
उसने घेरी बागड़ साड़ी जाहरवीर हिम्मत नहीं हारी।
अरजन, सरजन जान से मारे, अंगलपाल ने शस्त्र डारे,
चरण पकड़कर पिंड छुड़ाया, सिंहभवन माड़ी बनवाया।
उसी में गोगावीर समाये, गोरखटीला धूनी रमाये,
पुण्यवान भक्त वहाँ जाये, तन मन धन से सेवा लाये,
मनसा पूरी उनकी होये गोगावीर को सुमरे जोई,
चालीस दिन पढ़े जो चालीसा सारे कष्ट हरे जगदीशा,
दूधपुत उन्हें दे विधाता कृपा करे, गुरुगोरखनाथा।।