कौन थे शुक्राचार्य ?
पुरातन काल में असुरों के एक गुरु हुआ करते थे, नाम था शुक्राचार्य | इन्होने गुरु बृहस्पति के साथ गुरुकुल में शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की थी | हमेशा से उनमे देवताओं का गुरु बनने की इक्षा थी पर स्वर्ग में रह रहे सभी देवताओं ने बृहस्पति को अपना गुरु चुना इससे शुक्राचार्य क्रुद्ध हो उठे और पताल लोक जाकर असुरों के गुरु बन गए | शुक्राचार्य भी विद्वता में सर्वश्रेठ थे | उन्होंने एक ऐसा सिद्ध मंत्र बनाया था जिसकी मदद से वो किसी भी मृत व्यक्ति को भी जिन्दा कर सकते थे | आज के इस लेख में हम आपको उस मंत्र के बारे में सब कुछ बताएँगे |
कैसे बनाया संजीवनी मंत्र ?
हिंदू धर्म में दो मंत्रों महामृत्युंजय तथा गायत्री मंत्र की बड़ी भारी महिमा बताई गई हैं। कहा जाता है कि इन दोनों मंत्रों में किसी भी एक मंत्र का सवा लाख जाप करके जीवन की बड़ी से बड़ी इच्छा को पूरा किया जा सकता है चाहे वो दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनने की इच्छा हो या अपना पूरा भाग्य ही बदलना हो।
लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि शुक्राचार्य ने इन दोनों मंत्रों को मिलाकर एक अन्य मंत्र महामृत्युंजय गायत्री मंत्र अथवा मृत संजीवनी मंत्र का निर्माण किया था।
लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि शुक्राचार्य ने इन दोनों मंत्रों को मिलाकर एक अन्य मंत्र महामृत्युंजय गायत्री मंत्र अथवा मृत संजीवनी मंत्र का निर्माण किया था।
क्या है ये संजीवनी मंत्र ?
ऋषि शुक्राचार्य ने इस मंत्र की आराधना निम्न रूप में की थी जिसके प्रभाव से वह देव-दानव युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए दानवों को सहज ही जीवित कर सकें।
महामृत्युंजय मंत्र में जहां हिंदू धर्म के सभी 33 देवताओं की शक्तियां शामिल हैं वहीं गायत्री मंत्र प्राण ऊर्जा तथा आत्मशक्ति को चमत्कारिक रूप से बढ़ाने वाला मंत्र है। विधिवत रूप से संजीवनी मंत्र की साधना करने से इन दोनों मंत्रों के संयुक्त प्रभाव से व्यक्ति में कुछ ही समय में विलक्षण शक्तियां उत्पन्न हो जाती है। यदि वह नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करता रहे तो उसे अष्ट सिदि्धयां, नव निधियां मिलती हैं तथा मृत्यु के बाद उसका मोक्ष हो जाता है।