Teachings from life of Chanakya
चाणक्य झोपडी में रहते थे। उनकी झोपडी ऐसी जगह पर स्थित थी जहाँ पर बहुत सारे कंकड़ और पत्थर थे. उस समय नंगे पैर चलने का रिवाज़ था. चाणक्य की झोपडी तक पहुचते पहुचते लोगो के पैर लहूलुहान हो जाते थे।
एक दिन कुछ लोग बड़ी कठिनाई झेलते हुए चाणक्य के आश्रम तक पहुचे। उनमे से एक ने चाणक्य को कहा की आप राजा से कह कर इस रास्ते पर चमड़ा बिछवा कर ठीक क्यों नहीं करवा देते। चाणक्य मुस्कुराते हुए बोले रास्ता यहीं का नहीं पूरे देश में कहीं जहाँ का खराब है. यहाँ चमड़ा बिछवाने से ये कठिनाई सबके लिए थोड़ी ही सुधर जायेगी। अगर इस समस्या का समाधान चाहिये तो आप अपने पैरो में चमड़ा बांधना शुरू कर दो।
चाणक्य के जवाब से सब आश्चर्यचकित हो गए.
चाणक्य बोले देखो जीवन का सार दूसरो को सुधारने में नहीं खुद को सुधारने में है. जिसने अपने को सुधार लिया उसने हर परस्थिति में जीत हासिल कर ली. जीत खुद में परिवर्तन लाने में है न की दुसरो पर ऊँगली करने में.