सोमवार व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है । भगवान शिव देवो के देव, महादेव है । भगवान शिव को प्रसन्न करके मनचाहा फल पाया जा सकता है । श्रावण मास में सोमवार व्रत रखने का बहुत ही ज्यादा महत्व है । सोमवार व्रत बहुत तरीके से रखा जाता है । कुछ लोग १६ सोमवार व्रत रखते है, वैसे तो ये व्रत अविवाहित महिलाओ के लिए रखना ज्यादा फलदायी होता है लेकिन इस व्रत को कोई भी रख सकता है । अविविहित महिलाये सोलह सोमवार व्रत रखने से मनचाहा फल पा सकती है । क्या आप जानते है सोमवार व्रत कैसे रखा जाता है, क्यों रखा जाता है , कैसे पूजा करनी चाहिए । अगर आपको इसकी जानकारी नहीं है तो बिलकुल भी परेशान नहीं हो । आज हम आपको सोमवार व्रत से जुडी हुई सारी जानकारी देंगे ।
सोलह सोमवार व्रत का प्रारम्भ | Solah Somvaar Vrat Starting
सोमवार व्रत किसी भी सोमवार से शुरू कर सकते है लेकिन सोमवार व्रत श्रावण मास के पहले सोमवार से रखना शुभ माना जाता है । इस व्रत का विधि विधान से भगवान भोलेनाथ की पूजा करके व्रत रखने का बहुत ज्यादा महत्व है । अविवाहित कन्याएं लगातार १६ सोमवार तक सोमवार व्रत रखती है और १७वे सोमवार को इसका उदियापन करते है । भगवान भोलेनाथ बहुत ही जल्दी उनकी मनोकामना पूरी कर देते है ।
सोमवार व्रत की कथा : मनोवांछित पति की कामना पूर्ण के लिए रखे सोमवार व्रत
सोमवार व्रत के लिए ऐसे मान्यता है कि सबसे पहले यह सोमवार व्रत माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए इस व्रत को किया था । इस व्रत के फलस्वरूप ही भगवान शिव उन्हें भोलेनाथ के रूप में प्राप्त हुए थे । जभी से यह व्रत मनोवांछित पति की कामना पूर्ण के लिए अविवाहित कन्यायो द्वारा किया जाता है ।
यह व्रत परिवार की ख़ुशी के लिए भी रखा जाता है । शिव व्रत में सोलह सोमवार के व्रत को सबसे अछा माना जाता है । सबसे बड़ी बात यह व्रत पुरुष और स्त्री दोनों रख सकते है। पुरुष इस व्रत को संतान प्राप्ति , और परिवार को सुख समृद्धि के लिए भी रखते है ।
मनोवांछित फल पाने के लिए जप करे शिव जी मंत्र
सोमवार व्रत में प्रात: स्नान करके भगवान शिव की पूजा करे और मनोवांछित फल पाने के लिए जरूर करे ये शिव जी मंत्र का जाप
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।
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