कहाँ समा गयी थी माँ सीता ?
लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब भगवान् श्री राम माँ सीता और लक्ष्मण के साथ वापस अयोध्या आये तो उनका वहाँ भव्य स्वागत किया गया | पर कुछ दिनों बाद ही अयोध्या की प्रजा में माँ सीता को लेके तरह तरह की बात होने लगी | इस वजह से मर्यादा पुरुषोत्तम राम को माँ सीता का परित्याग करना पड़ा | माँ सीता ने अयोध्या छोड़ दी और महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में आकर आश्रय लिया | वाल्मीकि रामायण में इन बातों का वर्णन मिलता है | कुछ दिनों बाद जब श्री राम ने अश्वमेध यज्ञ किया और अपना अश्व चारो दिशा में विचरण के लिए छोड़ दिया तब उनके इस स्वछंद घूम रहे अश्व को दो बड़े ही तेजस्वी बालकों ने पकड़ लिया |
पूरी अयोध्या की सैन्य शक्ति उन दोनों के सामने हार गयी | तत्पश्चात प्रभु श्री राम खुद उनसे युद्ध करने आये | उनके वहाँ आते ही महर्षि वाल्मीकि ने श्री राम को बताया की ये 2 बालक उनके ही कुमार है लव और कुश | इसके बाद सभी ने माता सीता को अयोध्या जाने के लिए आग्रह किया पर तब माँ सीता ने अपनी इक्षा से माँ पृथ्वी का आवाहन किया और उनसे अनुरोध किया की वो माँ सीता को अपने अन्दर ले लें |
सीता समाहित स्थल :
सीता माँ के इस सामने वाले स्थान को सीतामढ़ी कहते है | भदोही. शहर से 45 किलोमीटर दूर गंगा के तट पर स्तिथ सीता समाहित स्थल आस्था और भक्ति का केंद्र बना हुआ है। इसी स्थान पर मां सीता ने अपने दूसरे वनवास के दिन काटे थे। मान्यता है कि जब भगवान राम ने माता सीता का परित्याग किया तो वो यहीं आकर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहीं। यहीं पर उन्होंने अपने दोनों पुत्रों लव-कुश को जन्म दिया। माता सीता ने जहां जमीन में समाधि ली, आज वहां एक मन्दिर बना दिया गया है।
उस स्थान पर माता सीता की मूर्ति लगा भी है। इसी स्थान पर हनुमान जी की एक विशाल मूर्ति बनी हुई जिसकी ऊंचाई 108 फुट की है। हनुमान जी की इस विशाल मूर्ति के विषय में कहा जाता है कि जब लव और कुश ने उन्हें इसी स्थान पर बंदी बनाया था, तभी से यहां हनुमान जी विराजमान हैं।