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हनुमान जी के पक्के भक्तों को ये 3 बातें तो ज़रूर पता होगी | Top 3 facts about Lord Hanuman



1. पता है क्यों कहलाते है हनुमान पवनपुत्र और भगवान शिव के अवतार ?


हनुमान की माता अंजना भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी | वो शिव को अपने पुत्र में पाना चाहती थी | इस बात के लिए उन्होंने भगवान् शिव की कड़ी तपस्या की और उनको प्रसन्न किया | भगवान् शिव ने उनको वरदान स्वरुप में से वचन दिया की वो उनके पुत्र के रूप में पैदा होंगे | जब अयोध्या में राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया तो फल स्वरुप उनको अग्नि कुंड से खीर के पात्र मिले | कौशल्या के पात्र से एक कौए ने अपनी चोंच में कुछ खीर भर ली और वो उड़ने लगा | भगवान् शिव के निर्देश पर पवन देव ने अपनी गति बढाई और उस कौए द्वारा चोंच में भरी खीर को माँ अंजना की झोली में गिरा दिया | इसे भगवान शिव का प्रसाद समझ वो खा गयी और पुत्र रूप में हनुमान ने उनके घर जन्म लिया |

2. ब्रह्मचारी होने के बाद भी हनुमान जी का एक पुत्र था 


बात तब की है जब लक्ष्मण जी को शक्ति बाण लगा था और वो मूर्छित पड़े थे | इस समस्या का समाधान थी संजीवनी बूटी जो एक पर्वत पर थी | वैद्य सुषेण ने उसे झट से लाने को कहा | तो वीर हनुमान उड़ चले संजीवनी बूटी लाने | वह पहुँचने से पहले उन्हें थोड़ी थकान हुई और वो एक पर्वत पर विश्राम करने उतरे | वहाँ एक नदी अभ रही थी तो उनका मन स्नान का हुआ | वो स्नान करने उस नदी में उतरे तो एक मगरमच्छ ने उनपर हमला  कर दिया | 

मगरमच्छ से युद्ध करते हुए हनुमान जी का पसीना उस मगरमच्छ के मुह में चला गया | उस मगर का वध करते की उसमे से एक अप्सरा निकली जिसने ये बताया की उसे एक ऋषि का श्राप था और सिर्फ हनुमान ही उसको इस श्राप से मुक्त कर सकते थे | मगर के मुख में गिरे पसीने की वजह से हनुमान जी को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम था मकरध्वज |  इसी घटना की वजह से आजीवन ब्रह्मचारी रहने के बाद भी वो पिता बन गए |

3. श्री राम ने हनुमान जी को दिया था मृत्युदंड  

ये बात तब की है जब भगवान राम अयोध्या के राजा बन गए थे | एक बार उन्होंने सभी ऋषि मुनियों को अयोध्या में निमंत्रित किया | सभी ऋषियों की टोली में विश्वामित्र भी आये | नारद जी हमेशा से हनुमान और राम के बीच के प्रेम की परीक्षा लेना चाहते थे | नारद जी ने हनुमान जी से कह दिया की आप सभी ऋषियों के चरण पखारियेगा सिवाय विश्वामित्र जी के क्योंकि वो राजा थे ऋषि बनने से पहले | हनुमान जी नारद जी के षड़यंत्र से बेखबर वही करते है | इस बात की वजह से विश्वामित्र जी रुष्ट नहीं होते | अपने मंसूबों पे पानी फिरते देख नारद जी स्वयं विश्वामित्र के कान भरने चले जाते है | विश्वामित्र नारद जी की बातों से अपना आपा खो बैठते हैं और प्रभु श्री राम को आदेश देते हैं की वो हनुमान को मृत्युदंड दें | 


भगवान् राम ना चाहते हुए भी अपनी मर्यादाओं में इतने बाध्य थे की उन्हें विश्वामित्र जी की बातों का अनुसरण करना पड़ता है | वो अपने तीर कमान के साथ तैयार होते हैं हनुमान पर निशाना साधने को | हनुमान भी हाथ जोड़ कर खड़े हो जाते हैं और राम-राम जपने लगते हैं | श्री राम एक बाण छोड़ते है वो हनुमान के शरीर को भेद नहीं पाता | वो दोबारा कोशिश करते हैं | वो हजारों बाण एक साथ छोड़ते है पर कोई भी तीर हनुमान जी को भेद नहीं पाता | कारण ये रहता है की हनुमान जी राम का नाम जप रहे होते हैं |


गुरु एक आदेश से बाध्य राम इस कार्य को पूरा करने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं पर वो भी हनुमान के सामने निष्क्रिय हो जाता है | तब नारद जी ग्लानी से भर उठते हैं और विश्वामित्र से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगते हैं |



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