कौन थी दरिद्रा ?
समुद्रमंथन के समय जब सागर में से दुर्लभ और विलक्षण चीजें निकल रहीं थी तब एक ऐसा क्षण भी आया जब सारे देवता और असुर शेषनाग को छोड़कर समुद्र के गर्भ से निकली माँ लक्ष्मी को एकटक देखते रह गए | इतनी मोहक और उज्जवल काया को देख सब स्तब्ध थे | कोई भी उनसे अपनी दृष्टि हटा ही नहीं पा रहा था | अगले ही पल लक्ष्मी जी के पीछे उनकी बहन दरिद्रा जी का प्रादुर्भाव हुआ | लक्ष्मी जी का रूप जितना ही मोहक और आकर्षक था वहीं उनकी बहन दरिद्रा का रूप उतना ही कुरूप और कुंठित था |
तो कहाँ ठिकाना मिला दरिद्रा को ?
समुद्रमंथन से निकलने के बाद इन दोनों बहनों के पास रहने का कोई निश्चित स्थान नहीं था इसलिये एक बार माँ लक्ष्मी और उनकी बड़ी बहन दरिद्रा श्री विष्णु के पास गई और उनसे बोली, जगत के पालनहार कृपया हमें रहने का स्थान दो | पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त था कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा अतः श्री विष्णु ने कहा, आप दोनों पीपल के वृक्ष पर वास करो | इस तरह वे दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगी |
कैसे हुआ दरिद्रा का विवाह ?
विष्णु भगवान ने माँ लक्ष्मी के सामने विवाह प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी माता ने इंकार कर दिया क्योंकि उनकी बड़ी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था | उनके विवाह के उपरांत ही वह श्री विष्णु से विवाह कर सकती थी | अत: उन्होंने दरिद्रा से पूछा, वो कैसा वर पाना चाहती हैं |
तो वह बोली कि, वह ऐसा पति चाहती हैं जो कभी पूजा-पाठ न करे व उसे ऐसे स्थान पर रखे जहां कोई भी पूजा-पाठ न करता हो | श्री विष्णु ने उनके लिए एक ऋषि वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए |
दरिद्रा और पीपल वृक्ष का संबंध :
दरिद्रा की शर्तानुसार उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहां कोई भी धर्म कार्य न होता हो | ऋषि उसके लिए उसका मन भावन स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान न मिला | दरिद्रा उनके इंतजार में विलाप करने लगी | श्री विष्णु ने पुन: लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोली, जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नहीं बसती मैं विवाह नहीं करूंगी | धरती पर ऐसा कोई स्थान नहीं है | जहां कोई धर्म कार्य न होता हो | उन्होंने अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा व उसके पति को दे दिया |
अत: हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है | अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है | पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी और उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा | इसी लोक विश्वास के आधार पर लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं, लेकिन यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है |