आपको अगर दोस्ती की मिसालें देनी होती हैं तो आपके ज़ेहन में सबसे पहले किसका नाम कौंधता है ? अजी छोड़िये आप तो जय-वीरू, धरम-वीर, याराना, दोस्ताना और फलाना से ज्यादा सोचे भी नहीं होंगे। अगर बहुत दिमाग पे जोर डाला होगा तो अपने आस पड़ोस की किसी दुर्लभ दोस्ती की कहानी बघार के सुना दी होगी। लेकिन हम आपसे पूछ रहे हैं की क्या आपने कभी अपने पुराणों में झाँक के देखा की यहाँ किसकी दोस्ती के किस्से सरनाम हैं ? यहाँ भी आपको कृष्ण-सुदामा, अर्जुन-कृष्ण और कर्ण-दुर्योधन की दोस्ती ही याद आएगी। जो दोस्ती की कहानी आप हमेशा भूल जाते हैं आज हम वही किस्सा आपके सामने खोलने जा रहे हैं। जी हाँ अज हम आपको बताने जा रहे है वानर राज सुग्रीव और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की अटूट दोस्ती के बारे में।
कैसे एक वानर और राजकुमार दोस्त बन गए ?
कहते है दुखी ही दुखी का साथी है। शायद ये बात त्रेतायुग में सबसे ज्यादा सिद्ध थी। जब भगवान् राम माता सीता के अपहरण के बाद उन्हें खोजने वन-वन भटक रहे थे तब उनकी भेंट शबरी से हुई जो भगवान् राम की अनन्य भक्त थी। उन्होंने श्री राम को बताया की यहाँ से जब वो ऋषिमूक पर्वत की और वो जायेंगे तो उन्हें सुग्रीव नमक वानर मिलेंगे जो उनकी माता सीता को खोजने में मदद करेंगे।
शबरी के कहे अनुसार राम और लक्ष्मण पर्वत की और बढ़ चले। पर्वत पर पहुँचने से पूर्व ही सुग्रीव ने इन दोनों राजकुमारों को देख लिया। चूंकि सुग्रीव को उसके भाई बाली ने किष्किंधा से निष्काषित कर रखा था और समय समय पर उसकी हत्या के लिये लोगों को भेजता रहता था इस बात से सुग्रीव को लगा की ये दोनों राजकुमार भी उसकी हत्या के लिये आये है। सुग्रीव ने हनुमान को इस बात की जांच के लिये भेष बदल के जाने को कहा। हनुमान ने ऐसा ही किया और जब उन्हें ये पता चला की ये प्रभु श्री राम है तो वो दोनों भाइयों को सहर्ष अपने कंधे पे बैठा कर लाये।
दोनों ने पूरा किया अपनी दोस्ती का हक़ :
जैसा की आप सब जानते हैं की अगर प्रभु श्री राम के पास वानर राज सुग्रीव की वानर सेना नहीं होती तो लंका तक पहुँच पाना प्रभु के कठिन होता। वहीँ अगर भगवान् श्री राम सुग्रीव के साथ खड़े नहीं होते तो सुग्रीव कभी भी अपने भाई बाली को युद्ध में पराजित नहीं कर पाता और अपना खोया राज-पाठ दोबारा हासिल नहीं कर पाता। पर इसके बाद भी हमारे बीच इस दोस्ती की मिसालें कम दी जाती हैं। जबकि हमें इस दोस्ती से प्रेरणा लेते हुए इस पूरे घटनाक्रम में दोनों के बलिदान, त्याग और दोस्ती के प्रति इनकी प्रीत की घोर सराहना करनी चाहिए।