लघु कथा :
प्राचीन काल में जब आज के समय जैसे सुपर मॉल, और हाई-टेक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स नहीं थे तब हर गाँव में एक साहूकार हुआ करता था। ये कहानी भी ऐसे ही एक साहूकार की है।
उस साहूकार से लक्ष्मी जी रूठ गई । जाते वक्त बोली मैं जा रही हूँ और मेरी जगह दरिद्रा आ रही है। तैयार हो जाओ। लेकिन मै तुम्हे अंतिम भेट जरूर देना चाहती हूँ। मांगो जो भी इच्छा हो। साहूकार बहुत समझदार था। उसने विनती की टोटा आए तो आने दो। लेकिन उससे कहना की मेरे परिवार में आपसी प्रेम बना रहे । बस मेरी यही इच्छा है।
लक्ष्मी जी ने तथास्तु कहा।
कुछ दिन के बाद :
साहूकार की सबसे छोटी बहू खिचड़ी बना रही थी। उसने नमक आदि डाला और अन्य काम करने लगी। तब दूसरे लड़के की बहू आई और उसने भी बिना चखे नमक डाला और चली गई। इसी प्रकार तीसरी , चौथी बहुएं आई और नमक डालकर चली गई। उनकी सास ने भी ऐसा किया ।
शाम को सबसे पहले साहूकार आया। पहला निवाला मुँह में लिया। देखा बहुत ज्यादा नमक है। लेकिन वह समझ गया की दरिद्रा आ चुकी है । चुपचाप खिचड़ी खाई और चला गया। इसके बाद बङे बेटे का नम्बर आया। पहला निवाला मुँह में लिया। पूछा पिता जी ने खाना खा लिया। क्या कहा उन्होंने ?
सभी ने उत्तर दिया- "हाँ खा लिया, कुछ नही बोले"। अब लड़के ने सोचा जब पिता जी ही कुछ नही बोले तो मै भी चुपचाप खा लेता हूँ। इस प्रकार घर के अन्य सदस्य एक एक आए। पहले वालो के बारे में पूछते और चुपचाप खाना खा कर चले गए।
रात को दरिद्रा हाथ जोड़कर साहूकार से कहने लगी "मै जा रही हूँ"।
साहूकार ने पूछा क्यों ?
तब दरिद्रा कहती हैं, "आप लोग एक किलो तो नमक खा गए । लेकिन बिलकुल भी झगड़ा नही हुआ। मेरा यहाँ कोई काम नहीं"।
कहानी का सार :
झगड़ा कमजोरी, दरिद्रता की पहचान है
जहाँ प्रेम है, वहाँ लक्ष्मी का वास है
सदा प्यार -प्रेम बांटते रहे।छोटे -बङे की कदर करे । जो बङे हैं ,वो बङे ही रहेंगे ।चाहे आपकी कमाई उसकी कमाई से बङी हो।जरूरी नहीं जो खुद के लिए कुछ नहीं करते वो दूसरों के लिए भी कुछ नहीं करते। आपके परिवार में ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने परिवार को उठाने में अपनी सारी खुशियाँ दाव पर लगा दी। लेकिन गलतफहमी में सबकुछ अलग-थलग कर बैठते हैं। विचार जरूर करे। मित्रो आज जो देश में भी ऐसी स्थति बनी है। यदि थोड़ा सयंम नही बरसा तो देश में अराजकता फैलते देर नही होगी। अतः धैर्य रखने से आज नही तो कल नये सूरज के दर्शन होंगे।