कौन थी हिमालय की पुत्री ?
जब हिमालय राज और उनकी पत्नी मैनावती के आँगन में उनकी पुत्री की किलकारियाँ गूँजी तो आकाश में टिमटिमाने वाले तारे थोड़े फ़ीके हो गये। देवताओं की पत्नियाँ उस बच्ची के रूप से थोड़ा खार खाये बैठ गयीं। धरती पर शोर के गुब्बार उड़ने लगे की इतनी ओज वाली कन्या ने आज तक किसी के घर जन्म नहीं लिया। सचमुच में ऐसी कन्या का जन्म किसी और के घर नहीं हुआ था क्योंकि पार्वती हर किसी के घर जन्म नहीं लेती। जी हाँ माँ पार्वती, भगवान् शंकर की अर्धांगिनी, उमा, गौरी, अम्बिका, भवानी और ना जाने कितने नामों से जानी जाने वाली।
किसने दी थी भगवान शिव से विवाह की युक्ति ?
पार्वती के जन्म का समाचार सुनकर देवर्षि नारद हिमनरेश के घर आये थे। हिमनरेश के पूछने पर देवर्षि नारद ने पार्वती के विषय में यह बताया कि तुम्हारी कन्या सभी सुलक्षणों से सम्पन्न है तथा इसका विवाह भगवान शंकर से होगा। किन्तु महादेव जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये तुम्हारी पुत्री को घोर तपस्या करनी होगी। देवी पार्वती ने ऐसा ही किया और वर्षों तक भगवान शिव की घोर तपस्या की उन्हें अपने वर रूप में प्राप्त करने हेतु।
कैसे हुआ शिव के साथ विवाह ?
नारद जी की प्रेरणा से हिमालय राज ब्रह्म जी के पास गए और सारा वृतांत बताया। ये सुनकर ब्रह्म देव प्रसन्न हुए और उन्होंने विष्णु जी के साथ मिलकर शिव को मानाने की ठानी। सर्वप्रथम तो शिव जी ने इस प्रस्ताव को सिरे से ख़ारिज कर दिया पर पार्वती जी की भक्ति देखकर वो पिघल गए। सारी बातें तय हो गई और विवाह का मुहूर्त भी निकल गया। सप्तर्षियों द्वारा विवाह की तिथि निश्चित कर दिए जाने के बाद भगवान् शंकरजी ने नारदजी द्वारा सारे देवताओं को विवाह में सम्मिलित होने के लिए आदरपूर्वक निमंत्रित किया और अपने गणों को बारात की तैयारी करने का आदेश दिया।