कौन हैं स्कंदमाता ?
स्कंदमाता माँ दुर्गा के नौ अवतारों में से पाँचवा स्वरुप हैं जिनकी पूजा पावन नवरात्र के पांचवे दिन होती हैं | स्कंदमाता को मोक्ष, शक्ति और संपदा की देवी माना गया है | अगर भक्तजन माँ की निस्वार्थ भाव से पूजा-अर्चना करें तो वो अपने जीवन कल में अपार शौर्य और सफलता की प्राप्ति कर सकते है |
माँ स्कंदमाता चतुर्भुज रूप में पूजी जाती हैं |दो हाथों में कमल का फूल, एक हाथ में कमंडल है एक हाथ को सदा आशीर्वाद की मुद्रा में रख ने वाली माँ स्कंदमाता शेर की सवारी करती हैं और उनकी गोद में भगवान स्कंद या कार्तिकेय विराजमान हैं | आइये जाने माँ स्कंदमाता और उनकी उत्पत्ति की कहानी |
![]() |
माँ स्कंदमाता की अनुपम छठा |
कैसे हुआ माँ स्कंदमाता का जन्म ?
भगवान शिव और माँ पार्वती एक बार कैलाश पर्वत पर ध्यान में लीन थे | दोनों की आध्यात्मिक उर्जा इतनी ज्यादा थी की उससे एक पवित्र अग्नि उत्पन्न हो गयी | तभी देवराज इंद्र ने ये देखा और अग्नि देव को इस उर्जा को चुराकर कहीं सुरक्षित स्थान पर छुपाने को कहा ताकि वो उर्जा राक्षस ताड़कासुर ना पा सके | जब माँ पार्वती ध्यान से उठी तब उनको वह वो उर्जा अनुपस्थित लगी | बाहर आने पर देवताओं ने उन्हें सारी कथा सुनाई |
देवताओं के इस कृत्या से माँ पार्वती रोष से भर गयी | तब उन्होंने माँ दुर्गा का रूप धारण किया और देवताओं को श्राप दिया की वो कभी भी संतान से सुख की प्राप्ति नहीं कर पाएंगे | तत्पश्चात भगवान् शिव ने उन्हें किसी तरह समझाया और उनको शांत किया |
आगे चलकर भगवान् कार्तिकेय ने मृत्य लोक पर जन्म लिया जिनको माँ पार्वती ने अपनी संतान की तरह मन और सरे संसार के सामने एक आदर्श माता का उदाहरण दिया | वो जब भगवान् कार्तिकेय को लेने जा रही थी तब उन्होंने माँ स्कंदमाता का रूप धारण किया और अपनी गोद में भगवान् कार्तिकेय को बैठा के वो कैलाश आई |
ताड़कासुर का वध :
ताड़कासुर को भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था की वो सिर्फ कार्तिकेय से ही पराजित हो सकता है और सिर्फ वही है जो उसका वध कर सकते है | कार्तिकेय को इस युद्ध के लिए माँ स्कंदमाता ने तैयार किया और प्रेरणा दी | आगे चलकर कार्तिकेय ने असुर ताड़कासुर का वध किया और देवताओं के सेनापति नियुक्त किये गए |