*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
हर साल बैसाख की शुक्ल पक्ष की चर्तुदशी को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नृसिंह अवतार लिया था और राक्षस हिरण्यकशिपु का वध किया था। वैसे तो पृथ्वी को दैत्यों से मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने कई अवतार लिए थे, इन्हीं में से एक नृङ्क्षसह अवतार था। बताया जाता है कि दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक शक्तिशाली मानता था। उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न कोई अस्त्र-शस्त्र मार सकता था। उसका अत्याचार इस कदर बढ़ गया था कि अगर कोई व्यक्ति उसके आगे भगवान का नाम भी लेता तो वे उसे भी मौत की सजा सुना देता था। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। उसके अपने बेटे को काफी समझाया, लेकिन उसके भगवान की भक्ति करना नहीं छोड़ा।
इस बात से परेशान होकर उसने अपने बेटे को भी उसके मौत के घाट उतारने की काफी कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो पाया। अंत में प्रहलाद की भक्ति से खुश होकर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया। भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखुनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।
शरभ ने नृसिंह को अपने पंजे से उठा लिया और चोंच से वार करने लगा। शरभ के वार से आहत होकर नृसिंह ने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया और शिव से निवेदन किया कि इनके चर्म को शिव अपने आसन के रूप में स्वीकार करें। इसके बाद शिव ने इनके चर्म को अपना आसन बना लिया। इसलिए शिव वाघ के खाल पर विराजते हैं। इस दिन जो भी व्यक्ति भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करता है, उसे सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष की भी प्राप्ति करता है। भगवान नृसिंह की पूजा के लिए फल, फूल और पंचमेवा का भोग लगाना चाहिए। इसके साथ ही भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नृसिंह गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।
इसलिए लिया विष्णु ने नृसिंह अवतार :
हर साल बैसाख की शुक्ल पक्ष की चर्तुदशी को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नृसिंह अवतार लिया था और राक्षस हिरण्यकशिपु का वध किया था। वैसे तो पृथ्वी को दैत्यों से मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने कई अवतार लिए थे, इन्हीं में से एक नृङ्क्षसह अवतार था। बताया जाता है कि दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक शक्तिशाली मानता था। उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न कोई अस्त्र-शस्त्र मार सकता था। उसका अत्याचार इस कदर बढ़ गया था कि अगर कोई व्यक्ति उसके आगे भगवान का नाम भी लेता तो वे उसे भी मौत की सजा सुना देता था। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था। उसके अपने बेटे को काफी समझाया, लेकिन उसके भगवान की भक्ति करना नहीं छोड़ा।
इस बात से परेशान होकर उसने अपने बेटे को भी उसके मौत के घाट उतारने की काफी कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो पाया। अंत में प्रहलाद की भक्ति से खुश होकर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया। भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखुनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।
नृसिंह भगवान के चर्म को बना लिया भोले ने अपना आसन :
इसके अलावा एक अन्य वजह भी है, जिसके लिए भगवान विष्णु ने ये रूप धरा। बताया जाता है कि हिरण्यकशिपु का वध करने के बाद भगवान नृसिंह का क्रोध शांत ही नहीं हो रहा था। वे पृथ्वी को नष्ट कर देना चाहते हैं। इस बात से परेशान सभी देवता भोलेनाथ की शरण में गए। भोलेनाथ ने नरसिंह भगवान का गुस्सा शांत करने के लिए अपने अंश से उत्पन्न वीरभद्र को भेजा। वीरभ्रद ने काफी कोशिश की, लेकिन जब भगवान नृसिंह नहीं माने तो उन्होंने वीरभद्र गरूड़, सिंह और मनुष्य का मिश्रित शरभ रूप धारण किया।शरभ ने नृसिंह को अपने पंजे से उठा लिया और चोंच से वार करने लगा। शरभ के वार से आहत होकर नृसिंह ने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया और शिव से निवेदन किया कि इनके चर्म को शिव अपने आसन के रूप में स्वीकार करें। इसके बाद शिव ने इनके चर्म को अपना आसन बना लिया। इसलिए शिव वाघ के खाल पर विराजते हैं। इस दिन जो भी व्यक्ति भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करता है, उसे सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष की भी प्राप्ति करता है। भगवान नृसिंह की पूजा के लिए फल, फूल और पंचमेवा का भोग लगाना चाहिए। इसके साथ ही भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके नृसिंह गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।