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सोने की लंका थी माँ पार्वती का उपहार :
भोले शंकर ने माता पार्वती का मनोरथ पूर्ण करने के लिए कुबेर से कहलवाकर स्वर्ण का भव्य महल बनवाया। रावण की दृष्टि जब इस महल पर पड़ी तो उसने सोचा इतना सुंदर महल तो त्रिलोकी में किसी के पास नहीं है। अत: यह महल तो मेरा होना चाहिए।
रावण ने धरा ब्राह्मण रूप :
रावण ब्राह्मण का रूप धार कर अपने इष्ट भोले शंकर के पास गया और भिक्षा में उनसे स्वर्ण महल की मांग करने लगा। भोले शंकर जान गए की उनका प्रिय भक्त रावण ब्राह्मण का रूप धार कर उनसे महल की मांग कर रहा है। द्वार पर आए ब्राह्मण को खाली हाथ लौटाना उन्हें धर्म विरूद्ध लगा क्योंकि शास्त्रों में वर्णित है द्वार पर आए हुए याचक को कभी भी खाली हाथ या भूखे नहीं जाने देना चाहिए। भूलकर भी अतिथि का अपमान मत करो। हमेशा दान के लिए हाथ बढाओ। ऐसा करने से सुख, समृद्धि और प्रभु कृपा स्वयं तुम्हारे घर आएंगी परंतु याद रहे दान के बदले मे कुछ पाने की इच्छा न रखें। निर्दोष हृदय से किया गया गुप्त दान महाफल प्रदान करता है।
भगवान् शंकर से नाराज़ हुई पार्वती :
भोले शंकर ने खुशी-खुशी महल रावण को दान में दे दिया। जब पार्वती जी को ज्ञात हुआ की उनका प्रिय महल भोले शंकर ने रावण को दान में दे दिया है तो वह खिन्न हो गई। भोले शंकर ने उनको मनाने का बहुत प्रयत्न किया मगर वह न मानीं।
शिव को देना पड़ा पार्वती को वचन :
जब सभी प्रयास विफल हो गए तो उन्होंने पार्वती जी को वायदा किया की त्रेतायुग में जब राम अवतार होगा तो मैं वानर का रूप धर कर हनुमान का अवतार लूंगा। तब आप मेरी पूंछ बन जाएं। राक्षसों का संहार करने के लिए प्रभु राम की माया से रावण माता सीता का हरण कर ले जाएगा तो मैं माता सीता की खोज खबर लेने तुम्हारे स्वर्ण महल में आऊंगा जोकि भविष्य में सोने की लंका के नाम से विख्यात होगी। उस समय तुम मेरी पूंछ के रूप में लंका को आग लगा देना और रावण को दण्डित करना। पार्वती जी मान गई। इस तरह भोले शंकर बने हनुमान और मां पार्वती बनी उनकी पूंछ। ये प्रसंग भी शिव के श्री हनुमान अवतार और लंकादहन का एक कारण माना जाता है।
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