Hinduism

क्या कारण था जो कुंभकर्ण उठता था साल में सिर्फ एक बार ? | What was the reason behind kumbhkarn long sleep ?



कौन था कुंभकर्ण ?


कुंभकर्ण, रामायण कथा के मुख्य पात्र रावण का छोटा भाई था | इनकी माता कैकसी राक्षस वंश की थी एवं पिता विशर्वा ब्राह्मण कुल के | कुंभकर्ण में माता पिता दोनों के गुण विद्यमान थे | माता कैकसी के मन में सत्ता एवम शक्ति का लोभ था इसलिये वे अपने पुत्रो को पृथ्वी के स्वामी के रूप में देखती थी और वही पिता विशर्वा ब्राहमण थे जिनमे अपार ज्ञान एवम शालीनता थी और वे उसी तरह से अपने पुत्रो को बनता देखना चाहते थे | 

तीनों भाइयों में क्या थी समानता/असमानता ?


माता पिता के अलग अलग स्वभाव एवम संस्कारों के कारण ही तीनों पुत्रो रावण, कुंभकर्ण एवम विभीषण में दोनों के गुण निहित थे | रावण के राक्षसों के समान सत्ता का लोभ था, शक्ति का घमंड था लेकिन अपने पिता के समान वो चारों वेदों का ज्ञाता था, उसमे अपार ज्ञान था लेकिन माँ की छाया में रहने के कारण उसकी अच्छाई पर बुराई का प्रभाव ज्यादा उभर कर सामने आया | वही कुंभकर्ण में भी अपार शक्ति थी लेकिन भाई प्रेम के कारण उसने कभी अपने भाई का विरोध नहीं किया | वही विभीषण पर पिता की छाया अधिक थी इसलिये उसने सदैव अपने भाई रावण को सही गलत का भेद समझाया |

क्यूँ मिला कुंभकर्ण को हमेशा सोने का वरदान ?

तीनों भाइयों ने ब्रह्मदेव की कठिन तपस्या करना शुरू किया | कुंभकर्ण के मन में स्वर्ग का आधिपत्य प्राप्त करने की मंशा थी क्यूंकि वो जीवन भर भर पेट भोजन करना चाहता था उसकी इस इच्छा के कारण सभी देव गण चिंतित थे क्यूंकि अगर उसकी इच्छा पूरी होती तो संसार का सम्पूर्ण भोजन खत्म हो जाता और सभी जगह त्राहि मच जाती | इस समस्या के निवारण के लिये सभी ब्रह्मदेव के पास जाते हैं | तब माता सरस्वती इस समस्या का निवारण करती हैं | वो कहती हैं कि जब कुंभकर्ण वरदान मांगेगा तो मैं उसकी जिव्हा पर बैठ जाउंगी और वो बोल नहीं पायेगा | 


 कुछ समय बाद ब्रह्मदेव कुंभकर्ण की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दर्शन देते हैं और उससे मनचाहा वरदान मांगने को कहते हैं | तब कुंभकर्ण जैसे ही इन्द्रासन बोलने के लिये अपना मुँह खोलता हैं उसके मुँह खोलते  ही उसकी जिव्हा पर देवी सरस्वती बैठ जाती हैं और उसके मुँह से इन्द्रासन के स्थान पर निन्द्रासन निकल जाता हैं | ब्रह्मदेव उसे तथास्तु कह देते हैं | जिसके बाद कुंभकर्ण बहुत दुखी होता हैं और ब्रहमदेव के सामने विलाप करने लगता हैं और याचना करता हैं कि ब्रह्मदेव उसकी सहायता करें | तब ब्रहमदेव कहते हैं कि दिया हुआ वरदान वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ इसलिये तुम्हे इतना दे सकता हूँ कि तुम छह माह तक विश्राम करोगे, छह माह के होते ही एक दिन के लिए जागोगे और पुनः छह माह के लिये सो जाओगे | भारी मन से कुंभकर्ण इस बात को स्वीकार कर लेता हैं |



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