India

Dear दीदी, मम्मी, दादी, मेरा पहला प्यार, ऑफिस का क्रश, बस वाली बंदी, नानी, हर खूबसूरत दिल और तुम्हारे लिये ये खुला ख़त



Dear Women,


आखिरी बार जब मै सुकून से सोया था तब मै तुम्हारी कोख़ में था। तुम पापा से मेरे नाम को लेकर रूठी हुई थी। पापा "चौदवीं का चाँद हो...." गाकर तुम्हे मनाने की कोशिश में थे। वो जब भी तुम्हे गुदगुदाते थे तो मेरी हँसी छूट जाती थी। उस दिन पता नहीं क्यों तुम्हारे सोने के बाद भी मुझे नींद नहीं आयी।
मैंने तुम्हे कभी बताया नहीं पर उस दिन जब तुम नहाने के बाद, तौलिये से बाल बाँधकर आँगन में तुलसी जी को जल दे रही थी तो तुमसे बिना पूछे कुछ बूंदे तुम्हारी लट से सरक कर तुम्हारे गाल पर बिखर गयीं। Background में ना कोई Violin बजी, न slow-motion में मेरे बाल उड़े पर पता नहीं क्यों उस दिन पापा से बड़ी जलन हुई।

जब खानदान की ऊँची नाक पे चढ़कर आपने दीदी का दाखिला मेरे Convent School में कराया तब यकीन मानिये उस दिन मुझसे ज्यादा खुश कोई नहीं था। अब कम से कम lunch में मेरी क्लास का कोई लड़का मेरा टिफिन तो नहीं चुरा पाता था। दीदी को रक्षाबंधन पर किये वादों को मै कभी पूरा ही नहीं कर पाया। बल्कि उन्होंने हर उस शख्स का बातों से क़त्ल किया जिसने कभी भी मुझे परेशान करना चाहा। मै अपने स्कूल, दोस्तों और घर के बीच में इतना बेखबर हो गया की तुम्हे बताना भूल गया कि दीदी तुम्हारी जब शादी हुई तब तुम बिलकुल माँ की शादी के Black & White फोटो की Color copy लग रही थी।

कॉलेज में पहली बार जब तुम्हे बाल गूंथते देखा तो तुम्हारा hair पिन बनने का दिल किया। तुम जब भी बेबाक होकर, हाथ झटक कर बातें किया करती थी तो उतनी देर के लिये मै गूंगा हो जाता था। पता नहीं लोग ख़ूबसूरती को रंग में क्यों घोल देते हैं। मुझे तो तुम्हारा संग ही खूबसूरत लगता था। शायद इसीलिए तुम्हारा कंधा मेरी तकिया और तुम्हारे बाल मेरी चद्दर हुआ करते थे। मेरी गिनती शायद तुम्हारे आंकड़ो से हमेशा कम ही रहेगी क्योंकि वो तुम थी जिसने एक नौकरी ना मिलने से फफक के रोने पर मेरे आंसू पोछे थे। वो तुम ही तो थी जिसने मेरी सिगरेट छुड़वा दी और शायद वो तुम ही थी जिसने ज़िन्दगी और प्यार को सिर्फ इतना कहकर समझा दिया था कि "अगर प्यार करना है तो ब्रश और toothpaste जैसा करो जो दिन में सिर्फ एक बार मिलते हैं और पूरे दिन के लिये ताज़गी छोड़ जाते हैं"। शायद ये तुम्हारे ही प्यार की ताज़गी है जिसने तुम्हारे बिना भी ज़िन्दगी को गुलज़ार कर रखा है।

तुम जब रोज सुबह मुझसे पहले उठकर office निकल जाती हो तो मै सोचता हूँ कि रात को इतने सपने साथ देखने के बाद भी तुम्हारी नींद मुझसे पहले कैसे खुल गयी ? और अगर खुल भी गयी तो तुमने पूरे घर के लिये नाश्ता कैसे तैयार कर दिया ? मेरे कपड़े कैसे तह करके मेरे बिस्तर के सिरहाने रख दिये ? तुम्हे कैसे पता चला की मै भी घर की चाभी भूल जाऊंगा और वो तुमने पहले से ही मेरे बैग में रख दिये ? मुझे तो लंच में तुम्हे फ़ोन करना भी याद नहीं रहता। पर तुम कैसे रोज़ वो romantic mail भेज देती हो ?
आज जब खाने के बाद बात करते हुए तुमने मेरे कान को गीला करते हुए ये फुसफुसाया कि "तुम पापा बनने वाले हो" तो चेहरे पर ख़ुशी की हज़ारों लकीरें उकर गयी। तुम बच्चे के नाम को लेकर मुझसे रूठ गयी। मै पूरी रात "तू किसी रेल सी गुज़रती है...." गाता रहा ताकि तुम मान जाओ।और आज पता नहीं क्यों तुम्हारे सोने के बाद भी मुझे नींद नहीं आयी।

हर एक मोड़ पर तुमसे पूरा हुआ,
तुम्हारा आभारी !



About Anonymous

MangalMurti.in. Powered by Blogger.