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कहाँ है ये मंदिर ?
प्राचीन खज्जी नाग मन्दिर खजियार प्रसिद्ध मन्दिर है। खजियार शहर हिमाचल प्रदेश का विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यहां का मौसम गर्मियों में भी सर्दी का आनंद देता है। प्रत्येक वर्ष हजारों पर्यटक यहां आते हैं। डलहौजी से खजियार लगभग 22 किलोमीटर दूर है। पठानकोट से डलहौजी लगभग 90 किलोमीटर दूर है। हिमाचल में अनेक नाग मन्दिर हैं। हिमाचल में हजारों ही नाग पाये जाते हैं और नाग की पूजा एक शक्ति के रूप में की जाती है। इस शक्ति से मानव ने शक्ति लेकर जुल्म का अंत किया।
कैसी है मंदिर की बनावट ?
खजियार के समीप यह प्राचीन मन्दिर अपनी नाग शक्ति का आध्यात्मिक स्थान रखता है। यह छोटा-सा मन्दिर प्राचीन कलावस्तु में बना हुआ है। इसके चारों तरफ खुला मैदान और ऊंचे-ऊंचे वृक्ष इसकी सुषमा को चार चांद लगाते हैं। मन्दिर के प्रवेश द्वार के बायीं ओर सर्प-नाग पूजन का स्थान तथा लाल रंग में ‘ऊं’ लिखा झंडा फहराता है। लगभग पांच सीढिय़ां चढ़कर मन्दिर की पीले रंग की दहलीज को छू कर हाथ सीने तथा माथे पर लगाकर मन्दिर में प्रवेश किया जाता है। मन्दिर में नाग देवता की प्रतिमा सुशोभित है। सारा मन्दिर आयताकार मुद्रा में होकर प्राचीन पहाड़ी निर्माण शैली में बना हुआ है। इसमें भी बड़ी-बड़ी खिड़कियां हैं। दीवारों के ऊपर काली टाइलों की प्राचीन ढलानरूपी छत है। तरह-तरह का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
नाग पंचमी का है अलग ही महत्व :
चम्बा में नाग देवता के अनेक मन्दिर हैं जिनमें 12वीं सदी में बने खज्जी नाग मन्दिर अपने धार्मिक, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार चम्बा के राजा पृथ्वी सिंह की दाई बाट्रल ने करवाया था। मन्दिर में खज्जी नाग देवता की प्रस्तर प्रतिमा प्रतिष्ठिïत है। मन्दिर के प्रांगण में काष्ठï की आदमकद प्रतिमाएं पांडवों को इंगित करती हैं। यहां नाग पंचमी धूमधाम व श्रद्धा से मनाई जाती है। इस दिन नागों की पूजा होती है।
ज्योतिष क्या कहता है नाग पंचमी के बारे में ?
ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं अर्थात् शेष आदि सर्पराज का पूजन पंचमी को ही होता है। सुंगधित पुष्प तथा दूध सर्पों को अतिप्रिय है। गांवों में इसे ‘नागचैयां ‘ भी कहते हैं। इस दिन ग्रामीण लड़कियां किसी जलाशय में गुडिय़ों का विसृजन करती हैं। ग्रामीण तैरती हुई इन निर्जीव गुडिय़ों को डंडे से खूब पीटते हैं। तत्पश्चात् बहन उन्हें रुपयों की भेंट तथा आशीर्वाद देती हैं। यह भी माना जाता है कि सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को जो सांपों को भाई के रूप में पूजेगा उनकी रक्षा स्वयं करेंगे।
इस प्राचीन मन्दिर में श्रद्धालु तरह-तरह की मनोकामनाएं पूरी पाकर नाग देवता के गुणगान करते हैं। यहां श्रावण शुक्ल पंचमी को दीर्घ मेला लगता है।
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