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हिन्दू पंचांग के हिसाब से कब मनाई जाती है होली ?
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिवसीय पर्व होता है। पहले दिन अर्थात पूर्णिमा की संध्या को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक है । तदुपरांत दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग होलिका की राख को प्रणाम कर उससे ही होली खेलना शुरु कर एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि के साथ उल्लासपूर्वक पर्व मानते है |
होलिका का क्या है महत्व ?
होलिका की रात्रि तंत्र साधना या किसी भी प्रकार की साधना के लिए काफी उपयुक्त मानी जाती है | इस रात्रि में जानकार साधक अपनी साधना में और अधिक वृद्धि करते है और जो लोग अपने कस्ट व समस्याओं से मुक्ति चाहते है वह भी इस दिन कुछ विशेष प्रयोग कर अपने व अपने परिवार को सुरक्षित कर सकते है |
सरसों का उबटन :
- आप सरसों का उबटन बना कर अपने बदन पर लगाये और फिर बची गंदगी को होलिका में डाल दे |
- संतरे का छिलका, मसूर की दाल व बादाम दूध में पीसकर पेस्ट बनाएँ और उबटन जैसे मल-मलकर धो दें। रंग साफ होकर निखर उठेगा।
- खीरे का रस थोड़ा सा गुलाबजल और एक चम्मच विनिगर (सिरका) मिलाकर मुँह धोने से भी रंग निकल जाता है।
- मूली को कद्दूकस करके उसका रस दूध में मिलाकर बेसन या मैदा डालकर पेस्ट बना लें। इसे लगाने से भी चेहरा साफ हो जाता है।
- अगर रंग ज्यादा गहरा हो और न उतर रहा हो तो दो चम्मच जिंक ऑक्साइड और दो चम्मच कैस्टर ऑइल मिलाकर लेप बनाएँ व इसे चेहरे पर लगाएँ।
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