बोध गया बिहार में स्तिथ एक धार्मिक स्थल है । यह बोध धर्म का तीर्थस्थान भी माना जाता है। बोध गया में एक महाबोधि मंदिर भी है जिसकी बहुत ज्यादा मान्यता है । ऐसी जगह पर हमे बोधि वृक्ष के वंशज पर बुद्ध अपना प्रबोधन करते थे। यह एक ऐसा स्थान है जहा पर पिंडदान करना सबसे ज्यादा अच्छा बताया जाता है । यहाँ पर पिंडदान करने से मोछ की प्राप्ति होती है ।
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गया में पितृ दान करते हुए |
क्या होता है पिंडदान ?
पिंडदान जौ और चावल को आटे में गूंधकर बनायीं गयी गोलाकार पिंड होता है जो की मरे हुए आदमी की आत्मा को अर्पित करने के लिए पिंडदान किया जाता है । शास्त्रो के मुताबिक पितृ का वहुत उच्चा स्थान होता है इसलिए ही पितृ के सारे काम पुरे विधिविधान से किये जाते है । उसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है । तभी पिंडदान पूरा माना जाता है । पितृ में मृत पूर्वजों, माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानीसहित सभी पूर्वज आते हैं।कहाँ पर किया गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त ?
ऐसा बताया जाता है कि बोध गया में एक फाल्गु नदी के किनारे बोधिवृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था और उन्होंने लगातार यही बैठकर तपस्या भी बहुत की थी, उनकी कठोर तपस्या के कारण बैशाख पुर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी । और भगवान बुद्ध की मृत्यु के बाद यहाँ पर मठो का निर्माण कराया गया था ।
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गौतम बुद्ध का ज्ञान ग्रहण स्थल |
अपनी वास्तुकला के लिए जाना जाने वाला महाबोधि मंदिर भी यही पर स्थित है । इस मंदिर में ही भगवान बुद्ध की पदमासन की अवस्था में मूर्ति विराजमान है ।
महाबोधि मंदिर
महाबोधि मंदिर बोध गया में स्थित एक बोद्ध मंदिर है । यूनेस्को के द्वारा इसे विश्व मंदिर भी घोषित किया गया है । ऐसा बताया जाता है की यह वही मंदिर है जहाँ पर भगवान बोद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था । यहाँ पर भगवान बुद्ध की एक विशाल मूर्ति विराजमान है और सबसे बड़ी बात यह मूर्ति उसी जगह विराजमान है जहाँ पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था ।
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महाबोधि मंदिर बोध गया |
इस मंदिर में उन सात स्थानों को भी चिन्हित किया है जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ित के बाद अपना सात सप्ताह व्यतीत किया था। यह एक विशाल पीपल का वृक्ष है जो मुख्य मंदिर के पीछे स्थित है। कहा जाता है कि बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इन सात हफ्तों में भगवान बुद्ध अलग-अलग जगहों पर गए थे, जो इस प्रकार है –
- सबसे पहला हफ्ता उन्होंने बोधि वृक्ष के निचे बिताया था।
- दूसरे हफ्ते बिना रूकावट और आराम के बुद्ध बोधि वृक्ष के पास ही खड़े रहे। इस जगह को अनिमेशलोचा स्तूप का नाम दिया गया था, जो महाबोधि मंदिर के उत्तर-पूर्व में स्थित है। वहाँ बुद्ध की मूर्ति भी बनी हुई है जिनकी आँखे इस तरह से बनायी गयी है की वे बोधि वृक्ष के पास ही देखते रहे।
- इसके बाद कहा जाता है की बुद्धा अनिमेशलोचा स्तूप और बोधि वृक्ष की तरफ चल दिये। महात्माओ के अनुसार, इस रास्ते में कमल का फुल भी लगाया गया था और इस रास्ते को रात्नचक्रमा का नाम भी दिया गया।
- चौथा हफ्ता उन्होंने रत्नगर चैत्य में बिताया जो उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है।
- पांचवे हफ्ते, बुद्धा ने अजपला निगोड़ वृक्ष के निचे पूछे गए सभी प्रश्नों के जवाब दिये थे।
- अपना छठा हफ्ता कमल तालाब के आगे बिताया था।
- सातवाँ हफ्ता भगवान बुद्ध ने राज्यतना वृक्ष के निचे बिताया था।