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द्रौपदी की लाज कृष्ण ने बचायी थी या फिर इस ऋषि ने ? | Who actually saved Draupadi ?



महाभारत के युद्ध का सबसे बड़ा कारण अगर कुछ था तो वो था द्रौपदी का चीर हरण | वैसे तो ऐसे कई कृत्य थे जिन्होंने बूँद बूँद करके सहिष्णुता का वो घड़ा भर दिया जिसके फूटते ही महाभारत जैसा वीभत्स युद्ध हुआ | पर इन सब कारणों में जो सबसे प्रमुख कारण बना वो निसंदेह भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण ही था |


आमतौर पर हम सब यही जानते हैं की जब दुशासन द्रौपदी की सारी खींच रहा था तब श्री कृष्ण का ध्यान करने की वजह से द्रौपदी की सहायता के प्रभु स्वयं आगे आये और उन्होंने द्रौपदी की सारी को अनंत बना दिया | पर ऐसा सिर्फ एक ऋषि के वरदान की वजह से हुआ | आइये पढ़ते हैं आज के विशेषांक में द्रौपदी चीर हरण की वो कहानी जो हमेशा अनकही रही |

द्रौपदी को मिले वरदान की कथा : 


एक समय की बात है, दुर्वासा ऋषि महाराजा द्रुपद के राज्य में पधारे | राजा द्रुपद ने उनका खासा सत्कार किया | फिर दुर्वासा ऋषि नदी में स्नान के लिए गए | उस नदी के एक तट पर कुमारी द्रौपदी भी अपनी सखियों के साथ स्नान कर रही थी | जब दुर्वासा ऋषि ने स्नान हेतु नदी में प्रवेश किया तो उसी क्षण उनके उतारे हुए वस्त्र हवा की वजह से नदी में बह गए | बिना किसी वस्त्र के दुर्वासा ऋषि नदी के बहार आने में असमर्थ थे | तब द्रौपदी ने अपने वस्त्र का एक टुकड़ा ऋषि दुर्वासा को दान किया | 


इस दानी व्यवहार से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने द्रौपदी को वरदान दिया की जिस भी क्षण उसे वस्त्र की अत्यधिक ज़रुरत होगी उस क्षण उसे अनंत वस्त्र की प्राप्ति होगी | 
यही कारण था की जब द्रौपदी का चीर हरण शुरू हुआ तब भगवान श्री कृष्ण ने ऋषि दुर्वासा के वरदान की प्रतिष्ठा रखते हुए द्रौपदी को अनंत वस्त्र की सहायता की |



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