हम सभी जानते है की माँ लक्ष्मी धन-धान्य और सुख-वैभव की देवी हैं | वो जहाँ भी वास करती है वहाँ सुख समृद्धि स्वतः ही आ जाती है | सोचिये अगर ये सदा के लिए ब्याह कर किसी के घर आ जायें तो क्या कभी उस घर में किसी तरह के दुःख का निवास हो सकता है क्या ? खैर आपको तो पता ही होगा की देवी लक्ष्मी किसकी अर्धांगिनी हैं पर आज हम आपसे वो कथा साझा करना चाहते है जो इस बात से पर्दा उठाएगी की कैसे हुई थी माँ लक्ष्मी की शादी |
देवी लक्ष्मी विवाह कथा : विस्तार से !
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवों के राजा इंद्र अपनी बढ़ती उपलब्धी और प्रशंसा की वजह से अहंकारी हो गए थे | वो प्रायः स्वर्ग से बहार विचरण के लिए निकलते थे | एक दिन भ्रमण करते हुए उनकी नज़र दुर्वासा ऋषि पर पड़ी | दुर्वासा ऋषि बहुत ही सिद्ध थे | प्रायः वो बहुत ही क्रोधी किस्म के थे और उन्हें परेशान करने वालों को श्राप दे देते थे | इंद्र ने उनको तपस्या से उठाना चाहा इस बात से वो क्रोधित हो गये और उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया की जिस भोग विलासता पर वो इतना इतराता है वो स्वर्ग से छीन जाएगी |
देखते ही देखते ऋषि दुर्वासा के वचन सत्य हो उठे | सभी देव शक्ति विहीन और दरिद्र हो गये | तब इंद्र ने ऋषि के इस श्राप से बचने के लिए ब्रह्मा जी का दरवाजा खटखटाया | ब्रह्मा जी ने स्वयम को इस कार्य के असमर्थ बताकर इंद्र को विष्णु भगवान के पास भेज दिया | विष्णु भगवान ने इस समस्या का समाधान समुद्र मंथन के द्वारा समाप्त होगा ऐसा बताया | उन्होंने कहा की समुद्र मंथन से ही धन-धान्य की देवी उत्पन्न होंगी वही तुम सब के दारिद्य्र-दुःख का नाश करेंगी |
समुद्र मंथन से हुआ जन्म :
भगवान विष्णु की प्रेरणा से असुर और देवताओं ने समुद्र मंथन का अद्भुत कार्य प्रारंभ किया | एक एक करके समुद्र के गर्भ से दिव्य और अद्भुत सामान निकलना शुरू हुए |
एक क्षण वो भी आया जब एक अलौकिक प्रकाश के पीछे से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई | उनके अनुपम सौंदर्य को देखकर सभी देवता और असुर सम्मोहित हो गए | हर कोई उनको पाना चाहता था | इंद्र इस बात को समझ गए की यही देवी लक्ष्मी है जो स्वर्ग के सुख को वापस लायेंगी | तो उन्होंने एक स्वयंवर का अवाहन किया | हर कोई इस स्वयंवर में आया यहाँ तक की भगवान् विष्णु भी आये | माँ लक्ष्मी के हाथ में फूलों का हार था वो जिसको भी पसंद करती उसके गले में वो हार डाल देती | सभी देव, असुर, अश्व, गंधर्व, किन्नर, उस सभा में उपस्थित थे और उस पल का इंतज़ार कर रहे थे की कब देवी लक्ष्मी किसी के गले में वो हार डालें |
उस क्षण माँ लक्ष्मी ने भगवान् विष्णु को अपना पति चुना और सहर्ष सभी लोगो ने इस चुनाव का स्वागत किया | इस प्रकार माँ लक्ष्मी विष्णु जी के साथ परिणय सूत्र में बंधी |