शिव शांत है, उनमे संयम है | वो परम योगी हैं, उनके जैसा ज्ञानी और कर्म की समझ रखने वाला और कोई भी नहीं | वो भक्तों के लिए जितने भोले हैं उतने की कठोर पापियों और अधर्म करने वालों के लिए हैं | वो कभी संसार की रक्षा के लिए अपने कंठ में विष भर लेते हैं तो कभी जटाओं में गंगा को बाँध लेते हैं | मतलब की शिव अपनी जिम्मेदारी को लेके खासे सजग हैं | अब अगर इतनी बाते पढ़ कर ये निचोड़ निकला जाए की इतनी खूबियों के मालिक के साथ अगर आपको अपनी बेटी की शादी करनी होगी तो क्या आप पीछे हटेंगे ? जवाब है कदापि नहीं | पर उस दिन ऐसा क्या हुआ था जब माता पार्वती की माँ मैना देवी शिव की बारात को देखकर बेहोश हो गयीं और शिव पार्वती के विवाह के विरुद्ध हो गयी ? तो आज के विशेषांक में जानते हैं ये रोचक प्रसंग |
शिव-पार्वती विवाह : रोचक प्रसंग
माता सती के वियोग में भगवान शिव ने वैराग्य धारण कर लिया था | वो कठिन योग का लगातार पालन करते जा रहे थे और पुर्णतः ध्यानमग्न हो गए थे | जब माँ सती अपने प्राणदाह करने जा रही थी तब उन्होंने ये प्रण लिया था की अगले जन्म में भी महादेव की ही अर्धांगिनी बनेगीं | माता का व्रत कहाँ मिथ्या जाने वाला था | उन्होंने हिमालय राज की पुत्री के रूप में जन्म लिया और पार्वती कहलायी | पार्वती को बचपन से ही भगवान् शिव का स्वरूप अत्यंत ही भाता था और वो हमेशा उन्ही की पूजा करती थी | मन ही मन में उन्होंने भगवान् शिव को अपना पति मान लिया था | एक बार नारद जी हिमालय पर पधारे तब उन्होंने पार्वती जी को शिव भक्ति करते देखा | उन्होंने हिमालय राज से पार्वती का विवाह शिव जी से करने को कहा और अंतर्ध्यान हो गए |
कैसे बढ़ी बात ? कैसे हुआ विवाह ?
नारद जी की प्रेरणा से हिमालय राज ब्रह्म जी के पास गए और सारा वृतांत बताया | ये सुनकर ब्रह्म देव प्रसन्न हुए और उन्होंने विष्णु जी के साथ मिलकर शिव को मानाने की ठानी | सर्वप्रथम तो शिव जी ने इस प्रस्ताव को सिरे से ख़ारिज कर दिया पर पार्वती जी की भक्ति देखकर वो पिघल गए | सारी बातें तय हो गई और विवाह का मुहूर्त भी निकल गया | सप्तर्षियों द्वारा विवाह की तिथि निश्चित कर दिए जाने के बाद भगवान् शंकरजी ने नारदजी द्वारा सारे देवताओं को विवाह में सम्मिलित होने के लिए आदरपूर्वक निमंत्रित किया और अपने गणों को बारात की तैयारी करने का आदेश दिया | शिवजी के इस आदेश से अत्यंत प्रसन्न होकर गणेश्वर शंखकर्ण, केकराक्ष, विकृत, विशाख, विकृतानन, दुन्दुभ, कपाल, कुंडक, काकपादोदर, मधुपिंग, प्रमथ, वीरभद्र आदि गणों के अध्यक्ष अपने-अपने गणों को साथ लेकर चल पड़े |
नंदी, क्षेत्रपाल, भैरव आदि गणराज भी कोटि-कोटि गणों के साथ निकल पड़े | ये सभी तीन नेत्रों वाले थे | सबके मस्तक पर चंद्रमा और गले में नीले चिन्ह थे | सभी ने रुद्राक्ष के आभूषण पहन रखे थे | सभी के शरीर पर उत्तम भस्म लगी हुई थी | इन गणों के साथ शंकरजी के भूतों, प्रेतों, पिशाचों की सेना भी आकर सम्मिलित हो गई |
इनमें डाकनी, शाकिनी, यातुधान, वेताल, ब्रह्मराक्षस आदि भी शामिल थे | इन सभी के रूप-रंग, आकार-प्रकार, चेष्टाएँ, वेश-भूषा, हाव-भाव आदि सभी कुछ अत्यंत विचित्र थे | वे सबके सब अपनी तरंग में मस्त होकर नाचते-गाते और मौज उड़ाते हुए शंकरजी के चारों ओर एकत्रित हो गए |
ऐसी बारात देख बेहोश हो गयी मैना देवी :
जब ऐसी बारात हिमालय राज के द्वार पर आयी तो इसे देखकर पार्वती जी की माता मैना देवी मूर्छित हो गयी | होश आने पर वो इस विवाह के विरुद्ध हो गयी किमी ऐसे व्यक्ति के साथ अपनी राजकुमारी का विवाह नहीं कर सकती | पर जब शिव जी ने उनको अपने १६ वर्षीय लावण्यरूप का दर्शन दिया तब उन्हें समझाया की ऐसा रूप तो कामदेव का भी नहीं और मैना देवी तुरंन्त ही प्रसन्न हो कर विवाह के लिए राजी हो गयी |