ऋषि मृकण्डु और उनकी पत्नी पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए भगवान शिव की तपस्या करी | भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए तथा वरदान मांगने के लिए कहा | तब ऋषि मृकण्डु और उनकी पत्नी ने भगवान शिव के समक्ष अपने पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखी | भगवान शिव ने उन्हें वरदान देने से पूर्व एक शर्त रखी की यदि तुम्हे बुद्धिमान तथा तीव्र बुद्धि वाला बालक चाहिए तो उसकी आयु अल्प होगी तथा वह कम आयु में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा , परन्तु यदि तुम्हे दीर्घ आयु का पुत्र चाहिए तो वह मंद बुद्धि होगा |
शिव भक्ति में रमा रहा मार्कंडेय :
ऋषि मृकण्डु तथा उनकी पत्नी दोनों ने अल्प आयु परन्तु बुद्धिमान पुत्र की कामना भगवान शिव से की | भगवान शिव के आशीर्वाद से उनके आश्रम में मार्कण्डेय नाम का विलक्षण एवं तीव्र बुद्धि वाले बालक ने जन्म लिया | मार्कण्डेय की आयु सिर्फ 16 वर्ष की ही थी | जैसे-जैसे मार्कण्डेय बड़ा हुआ उसका भगवान शिव के प्रति समपर्ण भी बढ़ता गया | जब मार्कण्डेय के मृत्यु का दिन निश्चित था उस दिन भी वे भगवान शिव की पूजा में लीन थे | मार्कण्डेय का भगवान शिव की पूजा में पूरी तरह लीन होने के कारण यमदूत भी उनकी पूजा में विघ्न डालने में असफल रहे |
जब स्वयं यमराज को आना पड़ा :
यमदूतों के उनके कार्य में सफल न हो पाने के कारण स्वयं यमराज को पृथ्वी लोक में आना पड़ा | उन्होंने मार्कण्डेय को अपने पास में फ़साने के लिए उसका फंदा बनाकर उस पर डाला परन्तु वह गलती से भगवान शिव पर जा लगा | यमराज की इस गलती पर भगवान शिव को यमराज पर क्रोध आ गया तथा वे अपने रूद्र रूप में वहां पर प्रकट हुए | रूद्र रूप में भगवान शिव का यमराज के साथ बहुत भयंकर युद्ध हुआ जिसमे यमराज को पराजय का सामना करना पड़ा |
तो ये वजह थी कालांतक नाम के पीछे :
तब भगवान शिव ने यमराज से एक शर्त रखी की उनका भक्त मार्कण्डेय अमर रहेगा | इस घटना के बाद से ही महादेव शिव ”कालांतक” नाम से जाने जाने लगे | कालांतक शब्द का अर्थ होता है काल यानि जो मृत्यु का भी अंत कर दे |सती पुराण में भी यह उल्लेखित है की स्वयं देवी पार्वती ने ऋषि मार्कण्डेय को वरदान दिया था की केवल वही उनके वीर चरित्र को लिख पाएंगे | इस लेख को दुर्गा सप्तशती के नाम से जाना जाता है जो की मार्कण्डेय पुराण का एक अहम भाग माना जाता है |