अच्छा मान लो अगर त्रेतायुग में रावण की लंका में स्वयं भगवान् शिव बैठे होते तो क्या प्रभु श्री राम रावण को कभी पराजित कर पाते ? अगर फ़र्ज़ करो रावण के रथ पर भगवान शिव का त्रिशूल रहता तो क्या कभी भी रावण पराजित हो पाता ? अगर भगवान शिव लंका में निवास करने लगते तो लंका अजेय हो जाती और धरती पर अधर्म का राज्य होता | तो ऐसा क्या हुआ होगा जो भगवान अपने इतने प्रिय भक्त के आवाहन पर भी लंका नहीं गए ? तो आइये आज हम आपको बताते है इस रोचक कथा के बारे में जो जानते है बहुत ही कम लोग |
क्या है ये शिवलिंग का किस्सा ?
बात त्रेतायुग की है जो काल भगवान राम और रावण के धर्म, कर्म और अधर्म की वजह से जाना जाता है | रावण का जन्म एक ब्राह्मण कुल में हुआ था | एक कुलीन वंश का ब्राह्मण होने की वजह से रावण बाल्यकाल से ही भगवान शिव की आराधना करने लगा | शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा पूरी करने के बाद अपनी माता की प्रेरणा से रावण भगवान शिव की तपस्या करने चला गया |
रावण की कठोर और अडिग तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिया इस पर रावण ने उनसे शिवलिंग के रूप में लंका में स्थापित होने का वरदान माँगा |
भगवान शिव ने प्रसन्नता में रावण को ये वरदान तो दे दिया पर अगले ही क्षण उन्हें इस बात की अनुभूति हुई की लंका में आसुरिक प्रवित्तियां इतनी ज्यादा है ऐसे में शिवलिंग का लंका में होना धर्म के लिए संकट के सामान है |
तो गणेश ने कैसे किया समाधान ?
भगवान शिव ने रावण से कहा की इस शिवलिंग को तुम अगर कही भी धरा पर रख दोगे तो ये वही स्थापित हो जायेगा | तो इस बात का ध्यान देना की ये सीधे लंका में ही रखा जाए | ऐसा कहकर भगवान ने अपने वरदान को ख़राब न होने के लिए रास्ता खोल दिया | जब रावण शिवलिंग लेकर लंका की ओर चला तो रास्ते में उसे लघुशंका लगी | उसने अपने आसपास देखा तो उसे एक ग्वाला गाय चरते हुए दिखा | ये ग्वाला कोई और नहीं बल्कि भगवान गणेश ही थे | रावण ने ग्वाले को शिवलिंग देते हुए कहा की इसे तुम धरती पर मत रखना अन्यथा मै तुमको बहुत दंड दूंगा | ये कहकर रावण चला गया | उसके जाते ही गणेश जी ने शिवलिंग को धरती पर रख दिया | जब रावण वापस आया तो ये दृश्य देखकर कुपित हो उठा | पहले तो उसने शिवलिंग उठाने का बहुत प्रयत्न किया पर सफल ना होने पर गुस्से में ग्वाले को कुए में दाल दिया और शिवलिंग को अपने अंगूठे से धरती में दबा दिया |
आज के समय में इस जगह को छोटी काशी के नाम से जाना जाता है और उस शिवलिंग को गोकर्णनाथ शिवलिंग |