Hinduism

जब शूर्पणखा की नाक बचाते-बचाते अपनी गर्दन उड़वा ली खर-दूषण ने | Khar Dooshan battle with Lord Rama



वाल्मीकि रामायण में वर्णित तथ्यों के आधार पर अगर देखे तो राम रावण युद्ध की जो सबसे प्रमुख वजह थी वो थी रावण का सीताहरण | और सीताहरण की सबसे बड़ी वजह थी शूर्पणखा की नाक कटना | या ये कहिये की पूरे रावण खानदान की नाक कटना | ये ईगो वाली आग भी बहुत अजीब है पहले ये शूर्पणखा को जलती है उसके बाद उसके भाइयों को और आखिरी में पता चलता है इसी आग की वजह से पूरी लंका जल गयी | रावण, कुम्भकरण और विभीषण की पराजय और जय के बारे में तो आप जानते होंगे पर शायद आपको शूर्पणखा के २ और भाइयों के बारे में नहीं पता होगा | तो आइये आपको आज खर-दूषण के बारे में बताते है जो सिर्फ शूर्पणखा की नाक बचाते बचाते अपनी जान गँवा बैठे |

कौन थे खर-दूषण ?

खर और दूषण रावण के सौतेले भाई थे | खर, पुष्पोत्कटा से और दूषण, वाका से ऋषि विश्रवा के पुत्र थे | जबकि रावण की माता का नाम कैकसी था | जब लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा की नाक कटी थी तो सबसे पहले शूर्पणखा विलाप करते हुए अपने भाई खर और दूषण के पास ही गयी थी और उसने इस मान हनी का प्रतिशोध लेने को कहा | बहन की ऐसी दुर्दशा देखकर खर-दूषण युद्ध के लिए सज हो गए |

खर-दूषण युद्ध :

खर-दूषण अपनी अथाह सेना के साथ लड़ने पहुंचे | वह उनका सामना जब श्री राम से हुआ तो उनकी सेना के परखच्चे उड़ गए | रथहीन हो जाने पर अत्यन्त क्रोधित हो खर हाथ में गदा ले राम को मारने के लिये दौड़ा |
खर ने क्रोध में कहा, "हे अयोध्या के राजकुमार! तुमने स्वयं के मुख से स्वयं की प्रशंसा करके अपनी तुच्छता का ही परिचय दिया है। तुममें इतना सामर्थ्य नहीं है कि तुम मेरा वध कर सको। मेरी यह गदा आज यह तुम्हें चिरनिद्रा में सुला देगी।" इतना कह कर खर ने अपनी शक्तिशाली गदा को राम के हृदय का लक्ष्य करके फेंका। राम ने एक ही बाण से उस गदा को काट दिया और एक साथ अनेक बाण छोड़ कर खर के शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया। क्षत-विक्षत होने परे भी खर क्रुद्ध सर्प की भाँति राम की ओर झपटा। उसे अपनी ओर लपकते देख कर राम ने अगस्त्य मुनि द्वारा दिये गये एक ही बाण से खर का हृदय चीर डाला। भयानक चीत्कार करता हुआ खर विशाल पर्वत की भाँति धराशायी हो गया और उसकी इहलीला समाप्त हो गई।


खर की सेना की दुर्दशा देख कर दूषण अपनी विशाल सेना को साथ ले कर राम के समक्ष आ डटा। कुछ ही काल में राम के बाणों से उसकी सेना की भी वैसी ही दशा हो गई जैसा कि खर की सेना की हुई थी। अपनी सेना की दुर्दशा देख कर क्रुद्ध दूषण ने मेघ के समान घोर गर्जना की और तीक्ष्ण बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। उसके इस आक्रमण से कुपित होकर राम ने चमकते खुर से दूषण के धनुष को काट डाला तथा एक साथ चार बाण छोड़ कर उसके रथ के चारों घोड़ों को बींध दिया जिससे चारों घोड़े निष्प्राण होकर भूमि पर गिर पड़े। पुनः राम ने एक अर्द्ध चन्द्राकार बाण छोड़कर दूषण के सारथी के सिर को धड़ से अलग कर दिया। इस पर क्रोधित दूषण एक परिध उठा कर राम को मारने झपटा। 


राम ने भी पलक झपकते ही अपना खड्ग निकाल लिया और दूषण के दोनों हाथ काट डाले। पीड़ा से छटपटाता हुआ वह मूर्छित होकर धराशायी हो गया। दूषण की ऐसी दशा देख कर सैकड़ों राक्षसों ने एक साथ राम पर आक्रमण कर दिया। प्रत्युत्तर में रामचन्द्र ने स्वर्ण तथा वज्र से निर्मित तीक्ष्ण बाण छोड़ कर उन सभी राक्षसों का नाश कर दिया। इस प्रकार से खर-दूषण सहित उनकी अपार सेना यमलोक पहुँच गई।



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