महाभारत में किसने किया था महाधनुर्धारी अर्जुन का वध?
आपने महाभारत में अनेक वीरों की ऐतहासिक कहानियां सुनी होंगी लेकिन क्या आपको यह पता है की किस वीर पाण्डवपुत्र ने अपने ही पिता और जो पूरे महाभारत में सबसे शक्तिशाली महाधनुर्धारी योद्धा था, अर्थात अर्जुन को हराकर उसका वध कर दिया था ? जी हाँ आज हम आपको महाभारत की एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे है जिसमे अपने ही पुत्र से महायोद्धा अर्जुन को अपने जान से हाथ धोना पड़ा।
चित्रागंदा और उलूपी के साथ अर्जुन का विवाह:-
महाभारत में अर्जुन ने द्रोपती और सुभद्रा के अलावा दो अन्य विवाह किये थे जिनके बारे में प्रसंग कम ही आते हैं एक विवाह तो उसने पाताल की नागकन्या अलूपी से किया था जिससे उसके पुत्र अरावन पैदा हुआ था जिसने कि बाद में अपनी स्वतछिक बलि दे दी थी और एक अर्जुन ने एक मणिपुर की राजकुमारी चित्रगंधा से भी विवाह किया था और बाद में अर्जुन ने चित्रगंधा का त्याग कर दिया था और अर्जुन के चले जाने के पश्चात उसको एक महाबलशाली पुत्र हुआ जो बभ्रवाहन के नाम से मशहूर हुआ।
श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्टर का अश्वमेध यज्ञ करना:-
बात उस समय की है जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था तो युधिष्ठर को श्रीकृष्ण ने अश्वमेध यज्ञ करने के सलाह दी और इसका महत्व समझाया तो युधिस्ठर ने अश्वमेध यज्ञ किया और अपने विजयी घोड़े के साथ अर्जुन के साथ विश्व भ्रमड़ हेतु भेजा। और विजयी घोड़े को लेकर अर्जुन जहाँ जहाँ भी जाते थे तो अधिकतर राज्य युद्ध के ही अर्जुन को समर्पण कर देते थे और जो राजा युधिस्ठर की अधीनता स्वीकार नहीं करते थे उनको अर्जुन अपने बल से हरा दिया |
बभ्रवाहन द्वारा अर्जुन की विजयी घोड़ा रोकना और दोनों में भीषण युद्ध :-
लेकिन जब अर्जुन घोडा लेकर मणिपुर में आये तो मणिपुर में बभ्रवाहन ने अपने ही पिता अर्जुन का विजयी घोड़ा अनजाने में रोक लिया और अर्जुन को भी मालूम नहीं था की जिसने यह घोड़ा रोका है वह स्वयं उनका ही पुत्र है और जब अर्जुन के काफी समझाने के बाद भी बभ्रवाहन घोड़े के आगे से हटने को तैयार नहीं हुआ तो दोनों पिता-पुत्र के बीच भयंकर युद्ध होना शुरू हो गया।
बभ्रवाहन द्धारा अर्जुन की म्रत्यु होना :-
और काफी भयंकर युद्ध के पश्चात बभ्रवाहन का एक बाण अर्जुन के लगा और अर्जुन बेहोश हो गया और उसके प्राण पखेरू हो गए और इधर दोनों के युद्ध की खबर सुनकर चित्रागंदा भी युद्धस्थल पर आ गयी और अर्जुन को बेहोश देखकर चित्रगंदा फूटफूटकर रोने लगी और अपनी माता को इस तरह रोते हुये देखकर बभ्रवाहन ने अचंभित होकर अपनी माता से जब इसका कारण पूछा तो चित्रागंदा ने सारी बातें बभ्रवाहन को बताई।
नागकन्या उलूपी द्धारा अर्जुन को पुनः जीवित करना :-
और फिर बभ्रवाहन को अपने किये पर बहुत ही पछतावा हुआ। और अर्जुन की म्रत्यु के बाद बभ्रवाहन और चित्रागंदा अर्जुन के प्राणों के लिए आमरण तप पर बैठ गए । और जब यह बात पाताल लोक में नागकन्या और अर्जुन की एक और पत्नी उलूपी को हुई तो वह अपनी माया से तुरंत ही वहाँ प्रकट हो गयी और बभ्रवाहन को एक एक मणि देकर कहा कि इसको अर्जुन की छाती पर रख दो। बभ्रवाहन के ऐसा करते ही अर्जुन के प्राण दुबारा से आ गए। और अर्जुन जीवित होकर उठ खड़ा हो गया।