कल देवों के देव महादेव की शादी है। स्वर्गलोक में देवता महंगे-महंगे इत्र में नहा रहें हैं। पाताल लोक में सुरों-असुरों ने अपने-अपने रथ तैयार कर रखे है। धरती पर शिव भक्तों ने कल व्रत रखने की तैयारी कर ली है। अब बस इंतज़ार है कल सुबह का जबसे शिव भक्त शुरू कर देंगे अपने इष्ट देव के पूजन और विवाह का। तो आइये हम आपको आज बताते हैं की कौन कौन आ रह है शिव के इस विवाह में और महाशिवरात्रि के पीछे की पूरी कहानी।
कैसे राज़ी हुए शिव माँ पार्वती से विवाह हेतू ?
माता सती के वियोग में भगवान शिव ने वैराग्य धारण कर लिया था | वो कठिन योग का लगातार पालन करते जा रहे थे और पुर्णतः ध्यानमग्न हो गए थे | जब माँ सती अपने प्राणदाह करने जा रही थी तब उन्होंने ये प्रण लिया था की अगले जन्म में भी महादेव की ही अर्धांगिनी बनेगीं | माता का व्रत कहाँ मिथ्या जाने वाला था | उन्होंने हिमालय राज की पुत्री के रूप में जन्म लिया और पार्वती कहलायी |
एक बार नारद जी हिमालय पर पधारे तब उन्होंने पार्वती जी को शिव भक्ति करते देखा | उन्होंने हिमालय राज से पार्वती का विवाह शिव जी से करने को कहा और अंतर्ध्यान हो गए | नारद जी की प्रेरणा से हिमालय राज ब्रह्म जी के पास गए और सारा वृतांत बताया | ये सुनकर ब्रह्म देव प्रसन्न हुए और उन्होंने विष्णु जी के साथ मिलकर शिव को मानाने की ठानी | सर्वप्रथम तो शिव जी ने इस प्रस्ताव को सिरे से ख़ारिज कर दिया पर पार्वती जी की भक्ति देखकर वो पिघल गए |
तो शिव के बाराती कौन है ?
भगवान् शंकरजी ने नारदजी द्वारा सारे देवताओं को विवाह में सम्मिलित होने के लिए आदरपूर्वक निमंत्रित किया है और अपने गणों को बारात की तैयारी करने का आदेश भी दे दिया है | शिवजी के इस आदेश से अत्यंत प्रसन्न होकर गणेश्वर शंखकर्ण, केकराक्ष, विकृत, विशाख, विकृतानन, दुन्दुभ, कपाल, कुंडक, काकपादोदर, मधुपिंग, प्रमथ, वीरभद्र आदि गणों के अध्यक्ष अपने-अपने गणों को साथ लेकर चल पड़ने के लिये तैयार हो चुके हैं |
नंदी, क्षेत्रपाल, भैरव आदि गणराज भी कोटि-कोटि गणों के साथ निकल पड़े है | ये सभी तीन नेत्रों वाले है | सभी बारातियों ने रुद्राक्ष के आभूषण पहन रखे हैं | सभी के शरीर पर उत्तम भस्म लगी हुई है | इन गणों के साथ शंकरजी के भूतों, प्रेतों, पिशाचों की सेना भी आकर सम्मिलित होने वाली है |
तो आप किस बात का इंतज़ार कर रहे हैं। जाइए और शुरू करिए तैयारी हमारे भगवान् शंकर के विवाह की।