हनुमान जी कलयुग में सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले और प्रिय देवता हैं। इनको संकट हरण संकटमोचन भी बोलते हैं और हनुमान जी के नाम का जाप मन से डर को दूर करने के लिए भी करते हैं। हनुमान जी प्रभु श्री राम के सबसे बड़े और प्रिय भक्त थे और रहेंगे जब तक यह दुनिया हैं।
अब जानते हैं हनुमान जी के बारे में एक ऐसी विचित्र बात जो हनुमान जी को भी नहीं पता थी जब उनको पता चला तो वो भी अचंभित थे।
हनुमान जी ने की माता सीता की खोज समुद्र के पार :
माता कैकयी ने राजा दशरथ से दो वरदान मांगे थे तो उसमें एक वरदान में भगवान श्री राम को वनवास मिला था। वनवास मिलने पर माता सीता भी प्रभु श्री राम और भाई लक्ष्मन के साथ वन गयी। वन में माता सीता का हरण हो गया। रावण ने माता सीता का हरण कर लिया और उनको समुद्र पार लंका ले गया। लंका में माता सीता अशोक वाटिका में रहती थी।
माता सीता की खोज में निकले श्री राम की भेंट हनुमान जी से हुई और हनुमान जी प्रभु राम की शरण में आ गए। हनुमान जी माता सीता की खोज में निकले और समुद्र पार कर लंका जा पहुँचे और माता सीता को अपना परिचय दिया।
हनुमान जी थे ब्रह्मचारी :
हनुमान जी ब्रह्मचारी थे उनको इस संसार से कोई मोह माया नहीं थी। हनुमान जी बस दिन रात प्रभु श्री राम की सेवा में लगे रहते थे। उनका दिन और रात सारा समय भगवान की भक्ति में निकलता था। हनुमान जी कभी स्त्रियों को गलत नजर से नहीं देखा वो प्रत्येक स्त्री को माता समान देखते थे और समझते थे।
हनुमान जी के भी एक पुत्र था :
सभी को आश्चर्य में डाल देने वाली बात हैं की हनुमान जी ब्रह्मचारी थे फिर भी उनके पुत्र था। वैसे यह बात जितनी हमें अचंभित करती हैं उतनी ही हनुमान जी को भी करती हैं। जब हनुमान जी माता सीता की खोज में निकले और लंका पहुँचे तो रावण ने उनकी पूछ जलवा दी। जब हनुमान जी लंका से वापस आ रहे थे तब उनको समुद्र पर करते समय पसीना आया जिसको एक मछली ने पी लिया और वो गर्भवती हो गयी।
पाताल के राजा रावण के भाई अहिरावण ने मछली को पेट कटवा दिया तो उसमे एक वानर का बालक निकला जिसको उसने अपना द्वारपाल रखा।
रावण ने राम और लक्ष्मन को पाताल में छिपा दिया था तो उनको खोजते समय हनुमान जी भेंट उस पुत्र से हुई। तब मच्छली पुत्र ने अपना परिचय दिया और खुद को हनुमान जी का पुत्र बताया। जिसको सुनकर हनुमान जी भी अचंभित थे। हनुमान जी को उसने सारी कथा सुनाई तब भगवान ने उसको अपना पुत्र माना।
हनुमान जी का अपने पुत्र के साथ युद्ध भी किया क्योंकि वो हनुमान जी को अंदर नहीं जाने दे रहा था। हनुमान जी ने उसको हराकर अहिरावण का वद्ध किया। अहिरावण के वद्ध के बाद हनुमान जी ने अपने पुत्र को पाताल का राजा बनाया और उसका राजतिलक किया।