कुछ 58 साल उम्र है, थोड़ा बूढ़ा दिखने लगा है और दिखे भी क्यों न ? जैसे खाल सिकुड़ के झुर्रियाँ बन जाती हैं वैसे ही मौसम के थपेड़ों ने इसकी दीवारों से रंग उतार के इसे बूढ़ा बनाने की पूरी कोशिश की है। बनारस के सीने पे बरसों से खड़ा ये बिना थके हर उस थके-हारे को पनाह देता है जो अपना अंत खोजते हुए बनारस आते हैं। यूँ तो नाम मुक्ति भवन है इस इमारत का पर ये सिर्फ जीवन से मुक्ति नहीं देता। ये अंत करता है जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म वाले पहिये का।
बनारस में मरने को इतना Romanticize क्यों किया गया है ?
गंगा में पैर डाले, बरसों से बैठे घाट इस बात के गवाह हैं की कितने मिट्टी के ढाँचे यहाँ राख हो गये। चिताओं से उठता धुँआ, जलती लकड़ियों की चिटकन से छितराती चिंगारियाँ और करोड़ो लम्हों को भस्म करने के बाद उन्हें एक घड़े में भर गंगा में बहा देना ये सब इन घाटों ने बचपन से देखा है।
"जीते जी जो कबहुँ काशी ना जाये
चार-चार कांधो पे वो चढ़के आये"
किसी का पैदा होना, बड़ा होना, ज़िंदगी जीना, मर जाना और फिर अगला जन्म लेना सनातन धर्म की रीढ़ सोच है। पर बनारस इस सोच से बहुत बड़ा है। इतना बड़ा की इस जीने, मरने और पुनर्जन्म का चक्कर, यहाँ मरते ही ख़त्म हो जाता है। कहते हैं काशी में मरना मोक्ष मिलने समान है। शायद इसी मोक्ष के लालच ने बनारस में मरने को इतना fancy बना दिया है। कभी-कभी सोचता हूँ जिस शहर में मरना इतनी खुशकिस्मती है वहाँ जीना कितना खूबसूरत होगा ?
कोई होटल भला किसी मरने वाले को क्यूँ ठिकाना देगा ?
मुक्ति भवन की 44 साल से देख रेख कर रहे भैरव नाथ शुक्ला बताते हैं की 12 कमरे वाली इस ईमारत में अब तक 14000 से भी ज्यादा लोगो ने प्राण त्यागे हैं। बहुत वक़्त नहीं मिलता यहाँ रुकने वाले को। कुछ 15 दिन बस। अगर इतने में आपके प्राण पखेरू उड़ गए तो ठीक वरना आपको अपना कमरा खाली कर कहीं और ठिकाना ढूँढना होगा। इन 15 दिनों तक मृत्यु का इंतज़ार कर रहे इंसान को सुबह-शाम आरती दर्शन और समय-समय पर गंगाजल पिलाने की सुविधा भी मुक्ति भवन उपलब्ध कराता है।
आमतौर पर अगर किसी होटल में ठहरे मुसाफ़िर की किसी कारण मौत हो जाए तो अगले ही दिन उस होटल की साख पे बट्टा और दरवाजे पर ताला लग जायेगा पर शायद दुनिया का यही एकलौता होटल जहाँ मरना इस होटल के अस्तित्व की अहमियत को बढ़ा देता है।
आमतौर पर अगर किसी होटल में ठहरे मुसाफ़िर की किसी कारण मौत हो जाए तो अगले ही दिन उस होटल की साख पे बट्टा और दरवाजे पर ताला लग जायेगा पर शायद दुनिया का यही एकलौता होटल जहाँ मरना इस होटल के अस्तित्व की अहमियत को बढ़ा देता है।