जब भी किसी भक्त की बात हैं तो सबसे पहले सभी के मन में रामभक्त का नाम आता हैं। हनुमान जी राम जी के सबसे बड़े भक्त थे इसलिए भगवन राम को वो सबसे ज्यादा प्रिय थे और आज भी हैं। यही कारण हैं भगवन राम के प्रत्येक मंदिर में हनुमान जी उनके चरणों में बैठे होते हैं। रामायण में हनुमान जी के बहुत सारे प्रसंग हैं लेकिन हम यहाँ पर केवल तीन प्रसंग की बातें करेंगे।
पहला प्रसंग हैं माता सीता का हनुमान जी से प्रसन्न होना -
माता सीता हनुमान जी भक्ति से बहुत ही ज्यादा प्रभावित थी। हनुमान जी राम जी के सबसे बड़े भक्त हैं यह बात माता सीता को भी पता थी इसी भक्ति से माता बहुत ही खुश थी। एक बार माता सीता ने हनुमान जी की भक्ति से प्रसन्न होकर उनको हीरों का हार दिया। हनुमान जी को कोई धन दौलत की मोह माया ही नहीं थी उन्होंने सीधे मन से हार के हर एक हीरे को फोड़कर देखा ऐसा करते करते उन्होंने पूरा हार तोड़ दिया। उनको ऐसा करते देख सभी सोच में पड़ गए तब माता ने उनसे पूछा की इतना कीमती हार तुमने तोड़ा क्यों ? यह प्रशन्न वँहा उपस्थित सभी लोगों के मन में था।
इस बात पर हनुमान जी ने माता का उत्तर देते हुए बोला की मेरे लिए यह सब बेकार हैं मैं इसमें आपको और भगवान राम को ढूंढ रहा था उनकी यह बात सुनकर सभी हस पड़े। हनुमान जी बोले आप दोनों मेरे सीने में रहते हो। इस बात को साबित करते हुए उन्होंने अपना सीन फाड़ दिखाया जिसमे भगवान श्री राम माता सीता के साथ थे। ऐसे भक्त थे हनुमान।
माता सीता को सिन्दूर लगाते देख क्या किया हनुमान जी ने ?
माता सीता प्रीतिदिन अपनी मांग में भगवान श्री राम के नाम का सिन्दूर लगाती थीं जैसे की हर महिला लगाती हैं। माता सीता को प्रतिदिन सिन्दूर लगाते देख हनुमान जी के मन में प्रशन्न आया की सिन्दूर लगाने का मतलब क्या हैं। उन्होंने यह बात माता से पूछी तब सीता जी ने बताया की वो अपने पति प्रभु श्री राम के नाम का सिन्दूर अपनी मांग में लगती हैं और सिन्दूर अपने पति की लंबी उम्र के लिए लगाया जाता हैं।
उनकी यह बात सुनकर हनुमान जी ने एक थाल भरकर सिन्दूर लिया और पूरे शरीर पर लगा लिया। माता सीता ने हँसकर हनुमान जी से इस बात का आश्य पूछा तो हनुमान जी ने बोला की उन्होंने सिन्दूर अपने पूरे शरीर पर लगा लिया हैं जिससे उनके प्रभु की उम्र बहुत लंबी हो जाएं और वो पूरा जीवन उनकी सेवा करे। यह बात सुनकर माता सीता भी गदगद हो गयी।
विभीषण से भेंट -
माता सीता की खोज में निकले हनुमान जी समुद्र को पार कर लंका जा पहुँचे जंहा रावण ने माता को कैद करके रखा हुआ था। लंका पहुचकर जब हनुमान जी माता सीता को ढूंढ रहे थे तब उनकी भेंट रावण के भाई विभीषण से हुई जोकि बहुत ही दयालु प्रवर्ति के थे।
विभीषण ने हनुमान जी से पूछा की क्या भगवान श्री राम उसको अपनी शरण लेंगे। विभीषण की इस शंका को दूर करते हुए हनुमान जी ने कहा की जब भगवान मुझ वानर को अपनी शरण में जगह दी हैं तो आप एक बहुत ही अच्छे इंसान हैं आप चिंता न करे। हनुमान जी ने अपनी अटूट भक्ति से विभीषण को विश्वास दिलाया और उनका दिल जीत लिया।