क्या है ये बेल-पत्र ?
कैसे करना चाहिये बेल-पत्र से पूजन ?
बेल-पत्र छह मास तक बासी नहीं होता अर्थात आप दुबारा एक बार जल से धो कर बेलपत्र को दुबारा शिवजी पर चढ़ाया जा सकता है | बेल-पत्र सदैव उल्टा अर्पित करें, अर्थात पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहें |
बेलपत्र विषम संख्या (एक, तीन, पांच, सात, नौ या ग्यारह ) में चढ़ाना शुभ फलदायी होता है
महादेव को बेल-पत्र अर्पित करते समय इस मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं :
"त्रीद्लं त्रिगुनाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुतम | त्रीजन्म पापसंहारम एक बिल्व शिव अर्पिन"
शिव का पूजन विधान में बेलपत्र चढ़ाये बिना शिव का पूजन अधूरा होता है | बेल-पत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुडी रहती हैं तीन संख्या का महादेव से अत्यंत जुड़ाव है | शिव त्रिलोचन (तीन नेत्रों वाले ), शिव का त्रिशूल है और शिव त्रिपुंड (लेटी हुई तीन रेखाओं का टीका) लगाते हैं इसीलिए बेल-पत्र शिव को अत्यंत प्रिय है |
तीन में पूरा संसार समाहित है :
त्रिदेव = ब्रह्मा, विष्णु , महेशत्रिलोक = स्वर्ग, मृत्यु, पाताल
तीन गुण= सत्व, रज, तम
तीन नाड़ी = वात, पित्त, कफ
तीन काल = भूत, वर्त्तमान, भविष्य
तीन ध्वनि = अ, उ, म (प्रणव = ॐ )
शिव की उपासना से मानव अपने तीनो तापों (भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक ) को नष्ट करता हैं | शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने से तीन युगों के पाप नष्ट हो जाते हैं। बेल-पत्र में चक्र एवम वज्र नहीं होना चाहिये | कीड़ों द्वारा बनाये हुए सफ़ेद चिन्ह को चक्र कहते हैं एवम बेल-पत्र के डंठल के मोटे भाग को वज्र कहते हैं |
बेल-पत्र मिलने की मुश्किल हो तो उसके स्थान पर चांदी का बेल-पत्र चढ़ाया जा सकता है |