*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। परशुराम भगवान विष्णु के अवतार थे। हमारे शास्त्रों में परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए दान का पुण्य कभी अक्षय यानी कभी कम नहीं होता है। इसलिए इस दिन जन्में परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। ऐसा कहा जाता है कि परशुराम का पृथ्वी में भगवान कल्कि के रूप में फिर जन्म होगा। ये भगवान विष्णु का दसवाँ अवतार होगा। इसके बाद कलियुग की समाप्ति होगी।
कन्नौज में गाधि नाम के राजा की पुत्री सत्यवर्ती का विवाह भृगु ऋषि के पुत्र ऋषिक के साथ हुआ। विवाह के बाद जब ऋषि ने सत्यवर्ती को वरदान मांगने को कहा। सत्यवती ने अपने लिए और अपनी माता के लिए पुत्र का वरदान मांगा। भृगु ऋषि ने दो फल दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष का और तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का अलिंगन कर ये फल खा लें, तुम्हारी कामना पूर्ण होगी। सत्यवती की मां ने उत्तम संतान प्राप्ति के लिए अपना फल सत्यवती से बदल दिया, लेकिन योगमाया से ऋषि को ये सारा मामला ज्ञात हो गया। इसमें सत्यवती का कोई दोष नहीं था उन्होंने सत्यवती से कहा कि पुत्री तुम्हारी माता ने तुमसे छल कर तुम्हारे फल का सेवन कर लिया और तुमने उनके फल का सेवन कर लिया है। अब तुम्हारी संतान जन्म से भले ब्राह्मण हो, लेकिन उसका आचरण एक क्षत्रिय जैसा होगा। वहीं तुम्हारी माता की संतान क्षत्रिय होने के पश्चात भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी। इस पर सत्यवती ने प्रार्थना करते हुए कहा कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र एक ब्राह्मण की तरह ही व्यवहार करे, भले ही मेरे पौत्र में क्षत्रिय के गुणों वाला हो। महर्षि भृगु ने सत्यवती की विनती स्वीकार की और सत्यवती की कोख से महर्षि जमदग्नि मुनि ने जन्म लिया। जमदग्नि का विवाह रेणुका से हुआ। रेणुका व जमदग्नि के पाँच पुत्र हुए इनमें पांचवे पुत्र थे भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम। इसलिए भगवान परशुराम का स्वाभाव क्षत्रिय समान था।
बचपम में परशुराम को राम नाम से जाना जाता था। जब वे बड़े हुए तो उन्होंने अपने पिता से धनुर्विद्या सीखने की इच्छा जाहिर की। तब उनके पिता ने उन्हें शिव की तपस्या करने को कहा। शिव की तपस्या के लिए वे हिमालय चले गए। तब असुरों से परेशान देवता शिव के पास आए तब उन्होंने राम से कहा कि असुरों का नाश करो। उन्होंने बिना अस्त्र और शस्त्र के असुरों का नाश कर दिया। इस बात से शिवजी बहुत खुश हुए और उन्होंने उसे परशु शस्त्र दिया। इसके बाद उनका नाम राम से परशुराम बन गया।
बताया जाता है कि कर्ण परशुराम को शिष्य था। कर्ण ने अपना परिचय सूतपुत्र के रूप में कराया था। जब एक बार भगवान परशुराम कर्ण की गोद में अपना सिर रखकर सो रहे थे। तब एक कीड़े ने कर्ण को काट लिया। परशुराम की नींद खराब न हो, इसलिए वे ये दर्द सहते रहे। जब परशुराम उठे तो उन्हें समझ आ गया कि कर्ण सूतपुत्र नहीं है, बल्कि क्षोत्रिय है। इस झूठ के कारण परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि जब मेरे द्वारा सिखाई गई शस्त्र विद्या की तुम्हें सबसे ज्यादा जरूरत होगी, उस समय तुम उसे भूल जाओगे। इस वजह से महाभारत युद्ध में कर्ण की हार हुई।