वरूथिनी व्रत की कथा का वर्णन भगवान श्री कृष्ण द्वारा किया गया है। इस वर्णन को सुना है पांडु पुत्र युधिष्ठिर ने। जब पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर ने जब श्री कृष्ण से पूछा कि भगवन वैसाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को क्या कहते हैं और इस व्रत का क्या विधान एवं महत्व है तब श्री कृष्ण ने पाण्डु पुत्र सहित मानव कल्याण के लिए इस व्रत का वर्णन किया।
वरूथिनी व्रत पूजन विधि :
- इस व्रत का पालन करने वाले को दशमी के दिन स्नानादि से पवित्र होकर भगवान की पूजा करनी चाहिए। इस दिन कांसे के बर्तन, मसूर दाल, मांसाहार, शहद, शाक, उड़द, चना, का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत रखने वाले को इस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और स्त्री प्रसंग से दूर रहना चाहिए। आत्मिक शुद्धि के लिए पुराण का पाठ और भग्वद् चिन्तन करना चाहिए।
- एकादशी के दिन प्रात: स्नान करके श्री विष्णु की पूजा विधि सहित करनी चाहिए। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं उनकी कथा का रसपान करना चाहिए। श्री विष्णु के निमित्त निर्जल रहकर व्रत का पालन करना चाहिए। किसी के लिए अपशब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए व परनिन्दा से दूर रहना चाहिए। रात्रि जागरण कर भजन, कीर्तन एवं श्री हरि का स्मरण करना चाहिए।
- द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात स्वयं तुलसी से परायण करने के पश्चात अन्न जल ग्रहण करना चाहिए।