जिन शनि से हमेशा हमें डर लगा रहता है। कभी कोई भी नया काम शुरू करने से पहले हम हज़ार बार ये चेक करके आश्वस्त होते हैं की कहीं इस मुहूर्त में शनि की साढ़े साती तो नहीं चल रही न ?
और अगर ये आपसे रूठ जाते हैं तो इनके मंदिरों के चक्कर लगा लगा कर हम इन्हें रिझाने की कोई कसर नहीं छोड़ते उस शनि देव की एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण कथा सुनाते हैं। तो आइये आज हम आपको भगवान् शनि की वो प्रसिद्द पौराणिक कथा सुनाते है जिसमे उन्होंने अपने ही पिता भगवान् सूर्य देव पर भी अपनी टेढ़ी दृष्टि का प्रभाव छोड़ा था।
पौराणिक कथा के अनुसार :
पौराणिक कथा के अनुसार शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के यज्ञ से हुआ। छाया शिव की भक्त थी। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कि वे खाने-पीने की सुध तक उन्हें न रही। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ मे पल रही संतान यानि शनि पर भी पड़ा और उनका रंग काला हो गया। जब शनिदेव का जन्म हुआ तो रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता।
मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिल्कुल काले हो गये, उनके घोड़ों की चाल रूक गयी। परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी इसके बाद भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव अपने किये का पश्चाताप करने लगे और अपनी गलती के लिये क्षमा याचना कि इस पर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला।
मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिल्कुल काले हो गये, उनके घोड़ों की चाल रूक गयी। परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी इसके बाद भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव अपने किये का पश्चाताप करने लगे और अपनी गलती के लिये क्षमा याचना कि इस पर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला।