शारदीय नवरात्रि की सप्तमी तिथि को ‘देवी कालरात्रि’ का पूजन होता है। देवी कालरात्रि के रूप को नव दुर्गा के नौ रूपों में सबसे रौद्र रूप माना गया है। इस दिन जो भी भक्त पूरे विधि-विधान के साथ इनकी पूजा अर्चना करते है देवी उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं एवं हर प्रकार के संकट और बाधा को हर लेती हैं। देवी कालरात्रि शनि ग्रह का प्रतीक भी मानी जाती हैं। शनि ग्रह हमारे जीवन में कर्म और न्याय का कारक है, एवं ये हमारे जीवन में धीरज और कठोर परिश्रम को भी दर्शाता है।
इनकी चार भुजाएं हैं जिसमें दाहिनी ओर की ऊपर वाली भुजा अभय मुद्रा में तथा नीचे की भुजा खाली है। बायीं ओर की ऊपर की भुजा में लोहे का काँटा तथा नीचे की भुजा में खड्ग है। इनका वाहन गधा माना गया है। माँ कालरात्रि के पूजन से भानु चक्र जाग्रत होता है। जिससे समस्त प्रकार के भय दूर होते हैं। माँ के स्मरण मात्र से भूत, प्रेत, पिशाच, ऊपरी हवा, अग्नि भय और अन्य अनेक प्रकार के भयों का शमन होता है। माँ को गुड़ का भोग सर्वाधिक प्रिय माना गया है।
नीचे दिए गए मंत्र का पूर्ण विशवास के साथ जाप करने से आपको जीवन में देवी कालरात्रि के आशीर्वाद की विशेष अनुभूति होगी एवं आपके जीवन में चल रही परेशानिया दूर होंगी।
देवी कालरात्रि अहंकार का विनाश करने वाली और भक्तों का कल्याण करने वाली हैं। माँ का यह रूप भक्तों को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला है। देवी के इस रूप की आराधना से ग्रह-नक्षत्र और भूत-प्रेत से किसी प्रकार का भय नहीं रहता है। ऐसा माना जाता है कि माँ कालरात्रि शनि के प्रभाव को भी कम करती हैं। माता के इस रूप को लाल रंग और गुड़ बहुत प्रिय है। इसलिए पूजा में गुड़ और लाल रंग के फूल सहित अन्य लाल रंग की पूजन सामग्री भी शामिल करें।
माँ कालरात्रि का परिचय :
माँ भगवती की सातवीं शक्ति के रूप में माँ कालरात्रि का पूजन किया जाता है। राक्षसों को मारने वाले काल की रात्रि (विनाशिका) होने से इनका नाम कालरात्रि पड़ा है। माँ का यह स्वरूप अत्यंत भयंकर है परंतु माँ सदैव शुभ फल देती है। इसी वज़ह से इनका एक नाम शुभंकरी भी है। इनका स्वरूप भी नाम के समान भयंकर काला है, सिर के बाल बिखरे हुए हैं, गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है तथा तीन नेत्र एकदम गोल हैं। जिसमें से चमकीली किरणें हमेशा निकलती रहती हैं।इनकी चार भुजाएं हैं जिसमें दाहिनी ओर की ऊपर वाली भुजा अभय मुद्रा में तथा नीचे की भुजा खाली है। बायीं ओर की ऊपर की भुजा में लोहे का काँटा तथा नीचे की भुजा में खड्ग है। इनका वाहन गधा माना गया है। माँ कालरात्रि के पूजन से भानु चक्र जाग्रत होता है। जिससे समस्त प्रकार के भय दूर होते हैं। माँ के स्मरण मात्र से भूत, प्रेत, पिशाच, ऊपरी हवा, अग्नि भय और अन्य अनेक प्रकार के भयों का शमन होता है। माँ को गुड़ का भोग सर्वाधिक प्रिय माना गया है।
माँ कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिये मंत्र :
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥