*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग इंदौर के समीप स्थित हे। ये नर्मदा के समीप स्थित है। विशेष बात ये है कि ज्योतिर्लिंग ओम के आकार में बना हुआ है। इसलिए इसे ओंकारेक्षर शिवलिंग के रूप में जाना जाता है। यहां आने वाले भक्त को ६८ तीर्थ का पुण्य मिलता है। बताया जाता है कि यहां पर 33 करोड़ देवी-देवता विराजमान है। यहां पर तपस्थली दिव्या रूप में 108 प्रभावशाली शिवलिंग भी स्थापित है। यहां आने से भक्तों के पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव प्रतिदिन तीनों लोकों में भ्रमण के बाद यहां आकर विश्राम करते हैं। इसलिए यहां प्रतिदिन होने वाली शयन आरती का विशेष महत्व है। शयन आरती में यहां काफी संख्या में भक्त उपस्थित होते हैं।
ये हैं कथा :
इस मंदिर का निर्माण के पीछे भी एक कथा है। बताया जाता है कि राजा मान्धाता ने नर्मदा किनारे स्थित इस पर्वत पर घोर तपस्या की थी। तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने राजा से वरदान मांगने को कहा। तब उन्होंने शिवजी के प्रकट होने पर उनसे यहीं निवास करने का वरदान मांगा लिया। तभी से उक्त प्रसिद्ध तीर्थ नगरी ओंकार-मान्धाता के रूप में पुकारी जाने लगी। जिस ओंकार शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ, इस ओंकार का भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र है।
सर्वश्रेष्ठ तीर्थ माना जाता है ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग :
ऐसा कहा जाता है कि कोई भी भक्त देश के भले ही सारे तीर्थ कर लें, लेकिन जब तक वह ओंकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहां, नहीं चढ़ाता उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं। ओंकारेश्वर तीर्थ के साथ नर्मदाजी का भी विशेष महत्व है। शास्त्र मान्यता के अनुसार जमुनाजी में 15 दिन का स्नान तथा गंगाजी में 7 दिन का स्नान जो फल प्रदान करता है, उतना पुण्यफल नर्मदाजी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है। ओंकारेश्वर तीर्थ क्षेत्र में चौबीस अवतार, माता घाट (सेलानी), सीता वाटिका, धावड़ी कुंड, मार्कण्डेय शिला, मार्कण्डेय संन्यास आश्रम, अन्नपूर्णाश्रम, विज्ञान शाला, बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, ओंकार मठ, माता आनंदमयी आश्रम, ऋणमुक्तेश्वर महादेव, गायत्री माता मंदिर, सिद्धनाथ गौरी सोमनाथ, आड़े हनुमान, माता वैष्णोदेवी मंदिर, चाँद-सूरज दरवाजे, वीरखला, विष्णु मंदिर, ब्रह्मेश्वर मंदिर, सेगांव के गजानन महाराज का मंदिर, काशी विश्वनाथ, नरसिंह टेकरी, कुबेरेश्वर महादेव, चन्द्रमोलेश्वर महादेव के मंदिर भी दर्शनीय हैं।
भक्त कुबेर ने की थी तपस्या :
इस मंदिर पर प्रतिवर्ष दिवाली की बारस की रात को ज्वार चढ़ाने का विशेष महत्व है। इस रात्रि को मंदिर में जागरण होता है तथा धनतेरस की सुबह 4 बजे से अभिषेक पूजन होता हैं। इसके बाद कुबेर महालक्ष्मी का महायज्ञ, हवन और भंडारा का आयोजन होता है लक्ष्मी वृद्धि पेकेट (सिद्धि) वितरण होता है, जिसे घर पर ले जाकर दीपावली की अमावस्या को विधि अनुसार धन रखने की जगह पर रखना होता हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो भी ये पैकेट घर लेजाकर रखते हैं, उनके घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है। इस अवसर पर हजारों भक्त दूर दूर से आते हैं।