हमारे शास्त्रों में भगवान शिव ऐसे देवता है, जो मनुष्य की थोड़ी सी भक्ति से ही प्रसन्न हो उठते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। प्रदोष व्रत ऐसा व्रत है, जो भोलेनाथ को अतिप्रिय है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना गया है। प्रदोष व्रत कृष्ण और शुक्ल पक्ष के 13 वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है। सूर्यास्त से सवा घण्टा पूर्व के समय को प्रदोष काल कहा गया है। इसलिए इस समय शिवजी की पूजा-अर्चना पूरी भक्ति भाव से करनी चाहिए।
प्रदोष व्रत की विधि :
- प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
- नित्यकर्मों से निवृ्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें।
- इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है।
- पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते है।
- पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है।
- अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है।
- प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है।
- इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए।
- पूजा में बैठकर निरंतर ॐ नमः शिवाय का जाप करें।
ये मिलता है लाभ :
ये व्रत अलग-अलग दिन आता है। हर वार का अपना महत्व होता है। प्रदोष व्रत अगर रविवार और मंगलवार को पड़ता है तो व्यक्ति हमेशा निरोगी रहता है और उसकी आयु भी लम्बी होती है। सोमवार व बुधवार को पडऩे वाले व्रत पर व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण होती है। गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत करने से शत्रुओं का नाश होता है, शुक्रवार को व्रत करने से गृहस्थ जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। मनचाही संतान की प्राप्ति के लिए शनिवार के दिन पडऩे वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए।