*यह आर्टिकल राखी सोनी द्वारा लिखा गया है।
बिगड़े काम बनाने हो या फिर शनि की क्रूर दृष्टि से निजात पानी हो, ऐसे में सुदरकांड का पाठ काफी लाभदायक और उपयोगी साबित होता है। श्रीरामचरितमान के सुंदरकांड अध्याय में बजरंगी बलि की महिमा विस्तृत वर्णन मिलता है। जो भी भक्त श्रद्धापूर्वक सुंरदकांड का पाठ करता है, उसपर न सिर्फ हनुमान जी बल्कि श्रीराम की भी कृपा बनी रहती है। इसके साथ उसे सभी मनोकामना शीघ्र पूरी होती है। शास्त्रों में हनुमान जी कृपा पाने के कई उपाय बताए गए हैं। इन उपायों में से एक सुंदरकांड का पाठ भी माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी सीताजी की खोज में लंका गए थे। लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी हुई थी। यहां तीन पर्वत थे पहला सुबैल पर्वत, जहां के मैदान में युद्ध हुआ था। दूसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे और तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत था, जहां अशोक वाटिका थी। इसी वाटिका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट हुई थी। इस कांड की यही सबसे प्रमुख घटना थी। इसलिए इसका नाम सुंदरकांड रखा गया है।
मंगलवार और शनिवार का विशेष महत्व :
वैसे तो ये पाठ कभी भी किया जा सकता है, लेकिन हर दिन पाठ करना संभव नहीं है तो शनिवार और मंगलवार ये पाठ जरूर करें। नियमित रूप से पाठ करने से भक्त की सारी विपत्तियों का नाश होना शुरू हो जाता है। घर में नेगेटिव एनर्जी का नाश होता है, बुरी शक्तियां भी घर में प्रवेश नहीं कर पाती है। जिन लोगों पर शनि की बुरी दृष्टि पड़ रही हो, उन्हें ये पाठ आवश्यक रूप से करना चाहिए।
शुभ काम की शुरुआत करें सुंदरकांड के पाठ से :
किसी भी शुभ कार्यकी शुुरुआत करने से पहले सुंदरकांड का पाठ करना काफी अच्छा माना जाता है। इस पाठ को करने से व्यक्ति की सभी कष्ट दूर होते हैं। इसके साथ ही जिस काम की वे शुरुआत करने जा रहे हैं, उसमें उसको सफलता भी मिलती है। विपरित परिस्थतियां भी सुंदरकांड के पाठ करने से दूर हो जाती है। कू्रर ग्रह का असर भी कम हो जाता है।
मिलता है आत्मविश्वास :
सुंदरकांड का पाठ न सिर्फ पापों से मुक्ति देता है, बल्कि आत्मविश्वास भी जगाता है। इस पाठ को करने से व्यक्ति के आत्मविश्वास बढ़ता है। इसके साथ ही मानसिक रूप से भी उसे शांति प्राप्त होती है।
ऐसे करें पाठ :
इस पाठ को करने के भी कुछ नियम होते हैं, जिसे हर भक्त को फॉलो करने चाहिए। इस पाठ को करने से सबसे पहले नहाएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद हनुमान की प्रतिमा को एक पट्टे पर विराजित करें। पट्टे पर लाल कपड़ा जरूर बिछाएं। इसके बाद फूल माला और तिलक अर्पण करें। देशी घी का दीपक और धूप बत्ती जलाएं। इसके बाद गणेश, शिव पार्वति, राम सीता लक्ष्मण और हनुमान को याद करते हुए अपने गुरुदेव और पितृदेव को याद करें। ऐसा कहा जाता है कि इस पाठ को करने से पितृदेवों की भी कृपा बनी रहती है। इसके बाद हनुमान जी को मिठाई का भोग लगाएं और पाठ करने के बाद आरती भी करें।